उत्पन्ना एकादशी के पूजन से मिलता है अपार पुण्य
आस्था। बहुत कम ही लोगों को पता है कि एकादशी एक देवी थी, जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी अगहन मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थीं, जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा इसी दिन से एकादशी व्रत शुरू हुआ था। ऐसा माना जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई। वैतरणी एकादशी को व्रत-उपवास रखने से शीघ्र ही समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हेमंत ऋतु में आने वाली इस एकादशी को उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन त्रिस्पृशा यानी कि जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। इस दिन एकादशी का व्रत रखने से एक सौ एकादशी व्रत करने का फल मिलता है। ग्रंथों के अनुसार अगहन मास भगवान कृष्ण और विष्णु की भक्ति का महीना माना गया है। इस दिन विष्णु के शरीर से माता एकादशी उत्पन्न हुई थीं। कथा के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक दैत्य था जिसने इंद्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया। भयभीत देवता भगवान शिव से मिले तो शिव जी ने देवताओं को श्री हरि विष्णु के पास जाने को कहा। क्षीरसागर के जल में शयन कर रहे श्रीहरि इंद्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी नगर गए। सुदर्शन चक्र से उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया। फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए। मुर ने उन्हें जैसे ही मारने का विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया। जागने पर श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी देवी को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया। इस तरह विष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है। इस वर्ष यानि 2021 में उत्पन्ना या वैतरणी एकादशी 30 नवम्बर को है।
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