देश का गौरव बढ़ा रही हैं आत्मनिर्भर महिलायें

विचार। चाहे खेल हो या अंतरिक्ष विज्ञान, देश की महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वह कदम से कदम मिला करआगे बढ़ रही हैं और अपनी उपलब्धियों से देश का नाम गौरवान्वित कर रही हैं। महिला वह शक्ति है, सशक्त है, वो भारत की नारी है, न ज्यादा में, न कम में, वह सब में बराबर की अधिकारी है। केंद्र सरकार की कई योजनाएं केवल महिलाओं के लिए हैं। मोदी सरकार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई कदम उठाए हैं। जिसका लाभ बड़े पैमाने पर देश की महिलाओं को मिल रहा है। सरकार का उद्देश्य है कि महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ें। वैसे भी हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। सुकन्या समृद्धि योजना प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना, फ्री सिलाई मशीन योजना, महिला शक्ति केंद्र जैसी योजनायें महिलाओं को सशक्त करने के लिये ही है। कुछ साल पहले तक घरेलू व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाएं ब्यूटी पार्लर और पापड़-अचार बनाने तक सीमित थीं, लेकिन अब उन्होंने शिल्प से लेकर वनोपज उत्पादों के निर्माण जैसे कई क्षेत्रों में कदम बढ़ाए हैं। गौठान, प्रसंस्करण केन्द्र और मल्टीयूटिलिटी सेंटर जैसे कई नए केन्द्रों के शुरू होने से महिलाओं के स्वावलंबन के लिए नई राहें तैयार हुई हैं, जिससे वे तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर अपने कदम बढ़ा रही हैं। देश के संविधान में महिला व पुरुष दोनों के लिये समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है। इसके साथ ही, राज्य द्वारा महिलाओं व बच्चों के पक्ष में विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है। केंद्र सरकार ने 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष  घोषित किया था। 2001 में महिलाओं के सशक्तिकरण की नीति पारित की गई। देश में न तो महिलाओं को सशक्त बनाने वाली सरकारी योजनाओं की कमी है और न ही स्त्री विमर्श करने वालों की। फिर भी लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह व्यवहारिक जीवन में हमारे आसपास के परिवेश में नजर नहीं आ रहा है। समूहों में संगठित होकर वनांचलों में महिलाएं वनोपजों के प्रसंस्करण से हर्बल उत्पाद और उनसे विभिन्न खाद्य सामग्री तैयार करने के साथ बांस शिल्प टेराकोटा, बेल मेटल शिल्प, गोबर से विभिन्न सजावटी सामान बनाकर आय अर्जित कर रही हैं, वहीं शहरों में महिला समूह मिलेट स्मार्ट फूड, कपड़ों के बैग, साबुन, अगरबत्ती जैसे कई सामान बनाकर विक्रय रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कोण्डागांव के शिल्पी स्व-सहायता समूह की महिलाएं बेल मेटल शिल्प बनाती हैं। समूह की महिलाओं द्वाराराज्य सरकार की मदद से दिल्ली में भी स्टॉल लगाकर सामानों की बिक्री करते हैं। स्टॉल से लेकर आने-जाने, खाना-पीना और रहने की व्यवस्था राज्य सरकार करती है। स्टॉल में वे 10-15 हजार के सामान बेच लेते हैं। इसके अलावा वे ऑर्डर से भी बेल मेटल का सामान बनाकर देते हैं। जिला प्रशासन ने लोगों को बांस के सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया। अब वे बांस के सजावटी सामान बनाते हैं, जिसे शासन के माध्यम से शबरी एम्पोरियम में बेचते हैं। एक बार में वे 10 हजार तक का सामान बेच लेते है। वहीं बिहान बाजार में बस्तर की भूमगादी महिला समूह की संतोषी के अनुसार उनके समूह से लगभग तीन हजार महिलाएं जुड़ी हैं। कम पढ़ी लिखी होने के कारण ये महिलाएं पहले खेती या मजदूरी का काम करती थीं। अब वे मूर्तियां, अचार, पापड़ के अलावा वनोपज से कई तरह के सामान तैयार करती हैं। वे शहद, हल्दी, आमचूर, आंवले की कैण्डी जैसे कई तरह के सामान बनाते और विक्रय करते हैं। समूह से जुडऩे से उन्हें कोचिया लोगों से आजादी मिली है जो सस्ते दर पर उनसे सामान ले लेते थे। राज्य सरकार उनके सामानों की मार्केटिंग में भी मदद कर रही है। उनके उत्पाद अब ऑनलाइन भी मिलने लगे हैं। राजधानी रायपुर के रोशनी किरण महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष शारदा साहू ने बताया कि समूह में 12 महिलाएं है जो स्वदेशी-छत्तीसगढ़ी व्यंजन सहित चूड़ी और विभिन्न सजावटी सामान तैयार कर बिक्री करती हैं। रायपुर की विनीता पाठक के अनुसार के समूह की महिलाएं मिलेट स्मार्ट फूड तैयार करती हैं, जो स्वास्थ्य और पोषण के लिए लाभदायक है। बच्चे भी इसे चाव से खाते हैं। वे रागी कुकीज, कॉफी, बाजरा के बिस्कुट सहित कई प्रकार के व्यंजन का ऑर्डर लेते हैं। इसी तरह रिसाली के राशि स्व-सहायता समूह और राधे स्व-सहायता समूह की महिलाएं दीया, झूमर, पेपर कैरी बैग तैयार करती हैं। सशक्तिकरण की योजनाओं से जुडक़र महिलाओं की न सिर्फ आमदनी बढ़ी है, बल्कि उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी है। आय का नियमित साधन होने से उनके परिवार की आर्थिक-सामाजिक स्थिति में भी सुधार आ रहा है। 

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