उनाव में सूर्यमंदिर के दर्शन से मिलता है चर्म रोग से छुटकारा व संतान का सुख

 

जानकारी। इक्ष्वाकु वंश के अविक्षित राजा के पुत्र तथा करंधम राजा के पौत्र वैशाली नरेश चक्रवर्ती सम्राट मरुत द्वारा अंगिरस ऋषि के दूसरे पुत्र एवं बृहस्पति के छोटे भाई संवर्त ऋषि के माध्यम से यमुना नदी के तट पर यज्ञ करवाया गया था। यज्ञ में काशी नरेश ने पाषाण यंत्र बनवाया, जो कालांतर में अमरकोश के रचयिता तथा चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्न अमर सिंह सौरा द्वारा उनाव में लाया गया। कलयुग में 16 वीं शताव्दी में मऊरानीपुर के निकट कुरैचा गांव के रहने वाले सूर्य उपासक पंडित सदाराम एवं पतराम द्वारा सूर्य यंत्र को उनाव के निकट गोवर्धन नामक स्थान से पीपल की जड़ से निकाला गया तथा नदी किनारे गाय के गोबर, शहद, गुड़, मिट्टी आदि द्रव्यों से चबूतरा बनाकर स्थापित किया गया था। झांसी के सूवेदार मराठा नारूशंकर का कुष्ठ रोग ठीक होने पर उनके द्वारा सवा लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान मन्दिर निर्माण के लिए दिया गया। मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ । मन्दिर का सिंहपौर (गुर्ज) बन ही पाया था, तभी दतिया नरेश बुन्देला शासक महाराज इंद्रजीत द्वारा मन्दिर का निर्माण कराया गया। इसके साथ ही दतिया के महाराजा भवानी सिंह(1857-1907) के शासन काल में मन्दिर का निर्माण पूर्ण हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि मन्दिर का निर्माण1750 के आसपास हुआ है। राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त द्वारा 1912-13 में लिखी गईं भारत भारती में उनाव के सूर्यमन्दिर का उल्लेख मिलता है। उनाव के सूर्यमन्दिर मन्दिर का प्रमुख भाग जिसे गर्भगृह कहा जाता है वह लगभग 10 फीट चौड़ा और लगभग उतनी ही लंबाई में बना हुआ है। गर्भगृह में बालाजी का आसन या वेदिका करीब पांच फिट ऊँचा चार फीट चौड़ा तथा तीन फीट लम्बा है। सैकड़ो वर्षों से मन्दिर के गर्भगृह में जल रही अखण्ड ज्योति इसकी दिव्यता का उदाहरण प्रस्तुत कर रही है। सूर्य मन्दिर पर श्रद्धालुओं द्वारा शुद्ध देशी घी अखंड ज्योति में डाला जाता है। प्रत्येक रविवार व बुधवार को वड़ी सँख्या में श्रद्धालु भगवान सूर्य के दर्शन को आते हैं और मनोकामना पूरी होने पर घी चढ़ाते हैं। वर्तमान में सात कुओं में से अस्तित्व में तीन ही कुएं हैंं, जिनमें व्यापक घी एकत्रित है। इस घी को कोई चाहते हुए भी बेच नहीं सकता। एकत्रित घी से अखंड ज्योति निरन्तर ज्योतिर्मय रहती है। मान्यता है कि पहूज नदी में स्नान करने और गीले वस्त्रों में ही भगवान सूर्यदेव को जल चढ़ाने से वहां पुजारियों द्वारा उपलव्ध कराये जाने वाले अष्टधातु से निर्मित छाजन, छजनी को मन्दिर में चढ़ाने से समस्त प्रकार के चर्मरोग दूर हो जाते हैं तथा निःसन्तान दम्पत्ति हल्दी के उल्टे हत्थे लगाकर अपनी गोद भरने की अर्जी लगाते हैं और भगवान भुवन भास्कर बालाजी महाराज उन्हें संतान सुख प्रदान करते हैं। जिसके वर्तमान में कई प्रमाण हैं। बुन्देलखण्ड की पावन धरती पर दतिया जिले की विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए अनूठा गांव उनाव। विशालता, सौम्यता, सौम्यता, जीवंतता समेटे हुए है। इस गांव में साक्षात सूर्य भगवान भास्कर काले पाषाण में वालयंत्र के रूप में विद्यमान हैं, जो भक्तों के चर्मरोगों का हरण करते हुए संतान प्राप्ति के सौभाग्य में बढ़ोत्तरी करते है। वर्तमान बालाजी मन्दिर प्राचीन काल में वालार्कजी के नाम से जाना जाता था जो कि समय के साथ परिवर्तित होते बालाजी नाम से प्रसिद्ध हो गया। उनाव वालाजी में दतिया की ओर से आने वाले श्रद्धालुओं को एक प्राचीन भिन्न भिन्न कलाकृतियों से सुसज्जित भव्य दरवाजे से होकर गुजरना पड़ता है।

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