योग और संगीत का समावेश प्राचीन काल से
आयुधर्मयशोवृद्धिः धनधान्य फलम् लभेत्।
रागाभिवृद्धि सन्तानं पूर्णभगाः प्रगीयते॥
भावार्थ : आयु, धर्म, यश वृद्धि, सन्तान की अभिवृद्धि, धनधान्य, फल-लाभ इत्यादि के लिये पूर्ण रागों का गायन करना चाहिये। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में योग और संगीत का समावेश भी प्राचीन काल से है। स्वर साधना स्वयं एक यौगिक क्रिया है जिसमें मन, शरीर व प्राण तीनों में शुद्धता एवं चैतन्यता आती है। भारतीय संस्कृति में योग के साथ संगीत का गहरा रिश्ता रहा है। योग के सिद्धान्त के अनुसार श्वासों से जुड़ना अर्न्तमन से जुड़ना है और व्यक्ति जब अन्तर्मन से जुड़ जाता है तो ऋणात्मक संवेग कम हो जाता है और धनात्मक संवेग स्थायी होने लगते हैं। ये धनात्मक संवेग मनोविकारों से व्यक्ति को दूर रखते हैं।
रागाभिवृद्धि सन्तानं पूर्णभगाः प्रगीयते॥
भावार्थ : आयु, धर्म, यश वृद्धि, सन्तान की अभिवृद्धि, धनधान्य, फल-लाभ इत्यादि के लिये पूर्ण रागों का गायन करना चाहिये। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में योग और संगीत का समावेश भी प्राचीन काल से है। स्वर साधना स्वयं एक यौगिक क्रिया है जिसमें मन, शरीर व प्राण तीनों में शुद्धता एवं चैतन्यता आती है। भारतीय संस्कृति में योग के साथ संगीत का गहरा रिश्ता रहा है। योग के सिद्धान्त के अनुसार श्वासों से जुड़ना अर्न्तमन से जुड़ना है और व्यक्ति जब अन्तर्मन से जुड़ जाता है तो ऋणात्मक संवेग कम हो जाता है और धनात्मक संवेग स्थायी होने लगते हैं। ये धनात्मक संवेग मनोविकारों से व्यक्ति को दूर रखते हैं।
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