गहरी साधना
बोधकथा : महात्मा बुद्ध अपने ध्यान के समय स्वयं बहुत गहरे तक उतर जाते थे। एक समय महात्मा बुद्ध अपने मठ में चातुर्मास कर रहे थे। दिनचर्या की सभी क्रियाओं के अलावा ध्यान की अवस्था में वह बिल्कुल शांत ही रहते थे। एक दिन आकाश काली घटाओं से घिर आया और रह-रह कर बिजली भी कड़क रही थी। मूसलाधार बारिश अपना अलग प्रकोप दिखा रही थी। तभी बादलों की तेज गरज और कड़क आवाज़ के साथ समीप ही बिजली गिरी और पास ही में दो किसान और तीन-चार बैल उसकी चपेट में आ गए। बुद्ध अपने ध्यान में मग्न गलियारे में टहल रहे थे। भीड़ ने उन्हें बताया कि अभी बिजली गिरने से दो किसान और कुछ बैल चपेट में आये। फिर ग्रामीणों ने उनसे पूछा-प्रभु, आप उस समय कहां थे। क्या आपने बादलों की गडग़ड़ाहट, बिजली की चमक और किसी की चीख-पुकार नहीं देखी-सुनी। बुद्ध बोले-नहीं वत्स, मैं कहीं अन्यत्र नहीं था। न मैं सोया था, न होश में था। मैंने न कुछ देखा, न सुना। मैं उस समय स्वयं के भीतर चला गया था जहां से बाहर का कुछ भी देखना असंभव है। उपस्थित जनसमूह बुद्ध की योग साधना से हतप्रभ था।
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