ब्रह्मचर्य की शक्ति
बोधकथा : स्वामी दयानंद सरस्वती जगह—जगह आर्य समाज आंदोलन का प्रचार कर रहे थे। लोग उनसे प्रभावित होने लगे थे तथा उनकी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी। स्वामी जी को सुनने के लिए लोग विभिन्न प्रान्तों और प्रदेशों से पैदल, घोड़ा गाड़ी अथवा बैलगाड़ी से आते थे। ऐसी ही एक सभा में स्वामी जी का व्याख्यान चल रहा था। वे ब्रह्मचर्य पर लोगों को समझा रहे थे। सभा समाप्त होने पर सभी अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर हो रहे थे। सहसा एक व्यक्ति अपनी बैलगाड़ी रोककर स्वामी जी के सम्मुख आकर कहने लगा-स्वामी जी! आप ब्रह्मचर्य विषय पर तो बड़े-बड़े व्याख्यान देते हो, लेकिन मुझे तो आप में और मुझ में कोई अन्तर दिखाई नहीं दे रहा। इस पर स्वामी जी केवल मुस्करा दिए। इसके बाद उस व्यक्ति ने अपनी बैलगाड़ी हांक दी। दोनों बैल भरपूर जोर लगा रहे थे, किन्तु गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी। ऐसे में उस व्यक्ति ने जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा, स्वामी जी बैलगाड़ी का पहिया पकड़े हुए थे। वह हतप्रभ रह गया तथा वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा। उसे अपनी भूल व ब्रह्मचर्य की शक्ति का आभास हो चुका था।
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