'देश को आगे बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी'

बोधकथा : घटना 1936 के ओलंपिक हॉकी विश्व कप फाइनल की है। फाइनल में भारत का मुकाबला जर्मनी से था। इस मैच को देखने के लिए स्टेडियम दर्शकों से भरा हुआ था। उस दिन विशेष रूप से जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी मैच देखने के लिए मौजूद थे। उस मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर ओलंपिक हॉकी का गोल्ड मेडल जीत लिया था। 3 गोल मेजर ध्यानचंद ने दागे थे। अपनी टीम की करारी हार को देखकर हिटलर मैच बीच में छोड़कर चला गया। उस रात हिटलर ने ध्यानचंद को अपने कमरे में बुलाया और पूछा-ध्यानचंद हॉकी खेलने के अलावा और क्या करते हो? ध्यानचंद ने उत्तर दिया-सर! मैं इंडियन आर्मी में लांस नायक हूं। इस पर हिटलर ने कहा-ध्यानचंद, अपने देश को छोड़ दो और जर्मनी की तरफ़ से खेलो। तुम्हारे देश ने तुम्हें क्या दिया है? मैं तुम्हें फील्ड मार्शल बना दूंगा। हिटलर का प्रस्ताव ठुकराते हुए मेजर ध्यानचंद बोले-सर, माफ़ कीजियेगा, आपका यह प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता। मुझे आगे बढ़ाना मेरे देश की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि अपने देश को आगे बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है। यह कहकर वह हिटलर के कमरे से चले आये।

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