मौलिक रूप से सात गोत्र हैं

जानकारी : गोत्र की अवधारणा पहली बार उत्तर वैदिक काल में आयी। गोत्र का शाब्दिक अर्थ गोष्ठ अर्थात् वह स्थान, जहाँ पूरे गोत्र का गोधन रखा जाता था। परन्तु गोत्र का यह अर्थ कुछ समय के बाद बदल गया। अब एक ही मूल पुरुष से उत्पन्न व्यक्ति एक गोत्र के कहे जाने लगे। प्रारंभ में गोत्र की अवधारणा ब्राह्मणों के लिए थी। ब्राह्मणों के द्वारा ही क्षत्रिय और वैश्य को गोत्र प्रदान किये गये। मौलिक रूप में सात गोत्र हैं जो ऋषियों के नाम पर हैं। यथा, कश्यप, वशिष्ठ, भृगु, गौतम, भारद्वाज अत्रि, तथा विश्वामित्र। आठवां गोत्र अगस्त्य ऋषि का माना जाता है। वे अनायों के ऋषि भी माने जाते हैं।

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