वैदिक युग में गुरु ब्राह्मण ही होता था
जानकारी : सनातन सभ्यता तो ज्ञात नहीं किया जा सकता कि कबसे है, हां लेकिन वेदों की रचना जबसे हुई तब से कालगणना भारतीय ज्योतिषियों ने वंशानुगत रखा है। वेद यानि जो हम कहते, सुनते हैं उन्हें शब्दों में उतारना। वैदिक शास्त्रों और पुराणों में ब्राह्मण का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। ब्राह्मण अपना राजा सोम को मानते थे, सोम यानि मधुरस, देवता आदि—आदि, सोम को कई अर्थों में प्रयोग किया गया है। ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त अन्य संहिताओं के विवरण से ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों, क्षत्रियों एवं वैश्यों के कर्त्तव्यों में विभाजक रेखायें स्पष्ट हो गई थीं। तैत्तरीय संहिता में विवेचन मिलता है कि ब्राह्मण ऐसे देवता हैं जिन्हें हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं। देवता के दो प्रकार उसे अन्य को प्रदान करते हैं अत: मानव देवता हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में जब वरुण से कहा गया कि राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र के स्थान पर ब्राह्मण पुत्र की बलि दी जायेगी। तो वरुण ने कहा कि ब्राह्मण तो क्षत्रिय से उत्तम समझा ही जाता है। ब्राह्मण को दिव्यवर्ण का कहा गया और उसमें समस्त देवताओं का निवास माना गया। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, ब्राह्मणों के चार विलक्षण गुण है- ब्राह्मण (ब्राह्मण के रूप में पवित्र पैतृकता), प्रतिरूपचय (पवित्राचरण), यश (महत्ता) एवं लोकपक्ति (लोगों को पढ़ाना या पूर्ण करना)। जन सामान्य द्वारा ब्राह्मण से ज्ञान अर्जित किये जाने पर उसे चार विशेषाधिकार मिलते थे-अर्चा (आदर), दान, अज्येयता (कोई कष्ट न देना) एवं अवध्यता। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार- राजा पर निर्भर होने पर भी ब्राह्मण राजा से श्रेष्ठ हैं। वाजसनेयी संहिता में ब्राह्मणों को राजा से उत्तम कहा गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि समाज में ब्राह्मण को कष्ट मिलने पर जल में टूटी हुई नाव की तरह राजा नष्ट हो जाता है। अत: शतपथ ब्राह्मण भी राजा की शक्ति का आधार ब्राह्मण को ही मानता है। ऐसी भी मान्यता है कि राजा अपने माता—पिता के पैर नहीं छूता था बल्कि गुरु का पैर छूता था और गुरु ब्राह्मण ही होता था।
रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलाे जितेन्र्दियः
दाता शूर दयालुश्च ब्राह्मणाे नवभिर्गुणैः
रिजुः = सरल हो
तपस्वी = तप करनेवाला हो
सन्ताेषी= मेहनत की कमाई पर सन्तुष्ट रहने वाला हो
क्षमाशीलाे= क्षमा करनेवाला हो
जितेन्र्दियः = इन्र्दियाें को वश में रखनेवाला हाे
दाता= दान करनेवाला हो
शूर = बहादुर हो
दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हाे
इन नौ गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही ब्राह्मण हाेता है|
रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलाे जितेन्र्दियः
दाता शूर दयालुश्च ब्राह्मणाे नवभिर्गुणैः
रिजुः = सरल हो
तपस्वी = तप करनेवाला हो
सन्ताेषी= मेहनत की कमाई पर सन्तुष्ट रहने वाला हो
क्षमाशीलाे= क्षमा करनेवाला हो
जितेन्र्दियः = इन्र्दियाें को वश में रखनेवाला हाे
दाता= दान करनेवाला हो
शूर = बहादुर हो
दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हाे
इन नौ गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही ब्राह्मण हाेता है|
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें