साध्वी का दृष्टिकोण

बोधकथा : एक मशहूर महिला साध्वी अपने पूजास्थल पर एक तरफ जल कलश और दूसरी तरफ एक जलता अंगारा रखती थीं। लोग इन पूजा प्रतीकों का रहस्य पूछते तो वे कहतीं, मैं अपनी आकांक्षाओं को पानी में डुबोना चाहती हूं और अहंकार को जलाना चाहती हूं ताकि पतन के इन दोनों अवरोधों से पीछा छुड़ाकर ईश्वर तक पहुंच सकूं। इस पर एक विद्वान पुरुष ने उनसे पूछा कि आप तो साध्वी हैं, सिद्ध हैं, आपमें अब दोष कहां रह गए, जिन्हें आप डुबोना-जलाना चाहती हैं। साध्वी ने कहा कि जिस दिन अपने आपको त्रुटिहीन मान लूंगी, उस दिन साध्वी तो क्या साधारण इंसान भी न रह जाऊंगी। एक महान संत और साधारण इंसान में इसी दृष्टिकोण का ही फर्क है।

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