कोमल और सरल बनो
बोधकथा : एक बार की बात है कि एक संत का अंतिम समय आ चुका था। उनके अंतिम दर्शन के लिए उनके अनेक शिष्य उनके पास खड़े थे। उनकी जिज्ञासा थी कि गुरुदेव कुछ उपदेश देकर जायें। संत ने शिष्यों को बुलाकर पूछा कि देखना मेरे मुंह में जीभ है या नहीं शिष्यों ने देखा कि जीभ मुंह में ही थी। शिष्यों को आश्चर्य हुआ कि हमारे मार्गदर्शक ने ये कैसा अजीब सवाल पूछा है। उन्होंने कहा-जीभ तो आपके मुंह में ही है। संत ने थोड़ी देर रुककर फिर पूछा-मेरे मुंह में दांत हैं या नहीं उनके मुंह में दांत नहीं थे। शिष्यों ने कहा-दांत तो गुरुदेव एक भी नहीं है। संत ने अपने शिष्यों से पलटवार किया और सवाल पूछा-जीभ तो मेरे जन्म से पहले ही मौजूद थी और दांत तो बाद में निकले थे। फिर क्यों कम उम्र वाले दांत पहले चले गये और जो पहले पैदा हुआ था वह अब भी मौजूद है। शिष्यों के पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था। उन्हें चुप देखकर संत ने कहा कि बच्चों, जीभ कोमल होती है और सरस। दांत कठोर, क्रूर और निर्मम हैं। इस वजह से दांत टूट गये और जीभ का अस्तित्व बना हुआ है। तुम भी जीभ के समान सरल और कोमल बनो।
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