'धनुष' के समान है मन

बोधकथा : मतंग ऋषि पशु व पक्षियों के प्रति काफी स्नेह रखते थे। वह अध्ययन और ईश्वरोपासना के बाद पक्षियों के साथ खेलने लग जाते थे। गौरैया और कौवे उनके कंधों व हाथों पर बैठ जाते थे। एक दिन जब वे पक्षियों के बीच चहक रहे थे तभी अनंग ऋषि वहां आए। उन्हें पक्षियों के साथ खेलते देख वह बोले-महाराज, आप इतने बड़े विद्वान होकर बच्चों की तरह चिडिय़ों के साथ खेल रहे हैं। इससे आपका समय नष्ट नहीं होता? अनंग ऋषि ने एक शिष्य को धनुष लेकर आने के लिए कहा। मतंग ऋषि ने धनुष लिया और उसकी डोरी ढीली करके रख दी। अनंग ऋषि बोले-आपने धनुष की डोरी ढीली करके क्यों रखी? मतंग ऋषि बोले-मैंने तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है। मैं इसे विस्तार से बताता हूं। हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो वह जल्दी टूट जाती है, किंतु अगर काम पडऩे पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह न सिर्फ अधिक समय तक टिकती है, बल्कि उससे काम भी अच्छे तरीके से होता है। इसी प्रकार काम करने पर ही मन को एकाग्र करना चाहिए। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो मन और अधिक मजबूत होगा। अनंग ऋषि हाथ जोड़कर बोले-मैं आपकी बात समझ गया।

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