स्मार्टफोन और शराब को जीवन का अहम अंग मान रहे हैं युवा!
विचार : देश में 80 के दशक में टेलीफोन और 90 के दशक में कम्प्यूटर का प्रवेश हुआ। टेलीफोन और कम्प्यूटर का शुरुआत में कुछ लोगों ने विरोध किया, लेकिन उनका विरोध कुछ खास असरदार नहीं रहा। तत्पश्चात 90 के दशक के अंत और सन 2000 की शुरुआत में मोबाइल फोन का पदार्पण हुआ। शुरुआत में कुछ लोग मोबाइल को और अधिक स्टाइलिश भाषा में सेल्यूलर फोन कहते थे। जिनके पास सेल्यूलर फोन होता था उन्हें समाज में बड़ा आदर मिलता था और नोकिया कम्पनी को तो कहा जाता था कि दुनिया की सबसे बेहतरीन कम्पनी है। जबकि अब न सेल्यूलर फोन रहा और न ही नोकिया कम्पनी। अब तो स्मार्टफोन सबके हाथों में, टच स्क्रीन का जबसे ईजाद हो गया तबसे तो समझ लो दुनिया हाथों में ही है। अब आजकल स्मार्टफोन की जितनी भी कम्पनियां श्रेणी के आधार पर हैं, उसी हिसाब से मनुष्य लोग भी अपने आप को भी श्रेणी में विभाजित कर लिया है। जबकि अब वह दिन दूर नहीं जब आईफोन स्मार्टफोन को समाप्त करने के लिए जन्म ले चुका है। दुनिया में लोगों को जितना आनन्द स्मार्टफोन चलाने और शराब पीने में आता है वह आनंद और कहां, लेकिन विश्व के कुछ लोगों का मानना है कि सबसे बड़ा सुख है आध्यात्मिक सुख जो प्रकृति यानि भूमि, गगन, वायु और नभ से जोड़े रहता है और इन तत्वों के बीच विचरण का जो आनन्द है वह अतुलनीय और नि:शब्द है। इस बात से इन्कार कतई नहीं किया जा सकता कि सूचना शक्ति आधुनिक युग की जरूरत है और इस जरूरत का सबसे प्रमुख माध्यम फोन ही है चाहे मोबाइल हो अथवा स्मार्टफोन। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि इन उपकरणों के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। लोग भौतिक सुख को सर्वस्व मानते हैं और वह भौतिक सुख शराब और फोन में ही है। जबकि ऐसा नहीं है शराब का ईजाद हुआ होगा तो दवा के रूप में न कि नशा के रूप में उसी तरह फोन का ईजाद हुआ है सूचना आदान—प्रदान का न कि गप्पे हांकना, अपनी निजता को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करना। वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञों के बीच अब यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि अगर परिवार के बड़े लोग ही स्मार्टफोन के इस्तेमाल में इतने खो जाएंगे, तो बच्चों को कौन संभालेगा? कहीं रिश्तों को पास लाने की कोशिश बच्चों को उनकी सेहत से दूर न कर दे। विशेषज्ञ अक्सर इस बात को लेकर चेताते रहे हैं कि बच्चों को फोन के ज्यादा इस्तेमाल से बचाना चाहिए। फोन पर ज्यादा वक्त बिताना उनकी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। ज्यादा स्क्रीन टाइम यानी स्मार्टफोन पर ज्यादा वक्त बिताने से उनकी आंखों को नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा अगर फोन की लत लग जाए तो बच्चों की सेहत को और भी नुकसान पहुंच सकते हैं। यह लत उनके मानसिक विकास में भी बाधक हो सकती है। वीडियो कॉलिंग के दौरान भी बच्चा स्मार्टफोन की ओर ही देखता है, इसलिए इसका भी दुष्प्रभाव उतना ही है, जितना फोन पर कोई वीडियोगेम खेलने का। घर और ऑफिस के अलावा मेट्रो, बस या तक कि पैदल चलते समय भी लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हुए नजर आ जाएंगे। गर्दन का बुरा-हाल, उंगलियों में दर्द, कंधे में दर्द, पीठ में दर्द, आंख में दर्द जैसी शिकायतें भी देखने सुनने को मिल रही हैं। वहीं शराब की बात की जाये तो समाज में शराब का भी खूब प्रचलन है चाहे वह कच्ची हो या फिर अंगे्रजी। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में वर्ष 2016 में शराब से 30 लाख मौतें हुई। 20 से 29 आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब से होती हैं। शराब उद्योग मिथक फैलाने के लिए प्रयासरत है कि थोड़ी सी शराब पीने से नुकसान नहीं होता है। शराब और अन्य तरह के नशे के विरुद्ध भारत में जो सामाजिक मान्यता बहुत पहले से रही है, उसे और मजबूत करने की जरूरत इस समय है। इसमें पूरे विश्व का कल्याण है। जिस तरह दूर-दूर के गांवों तक में शराब का चलन तेजी से बढ़ रहा है, और शराब के बढ़ते चलन के साथ अपसंस्कृति का प्रसार बढ़ रहा है, इस दौर में तो शराब और नशे के विरुद्ध सामाजिक मान्यताओं को और भी मजबूत करना जरूरी हो गया है। युवाओं और छात्रों तक शराब से जुड़ी तमाम गंभीर समस्याओं की जानकारी असरदार ढंग से पंहुचानी चाहिए। इसके अलावा सरकार और नागरिकों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि अपना समाज और देश स्वस्थ, स्वच्छ एवं मस्त हो।
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