डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार : राष्ट्र की स्वतंत्रता और एकता के लिए निभाई अहम भूमिका

 
विचार : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. जब वो महज 13 साल के थे तभी उनके पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवतीबाई का निधन हो गया. उसके बाद उनकी परवरिश दोनों बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने की. शुरुआती पढ़ाई नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में हुई. लेकिन एक दिन स्कूल में वंदेमातरम गाने की वजह से उन्हें निष्कासित कर दिया गया. उसके बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए यवतमाल और फिर पुणे भेजा. मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी एस मूंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता भेज दिया. यह बात 1910 की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1915 में नागपुर लौट आए. डॉ. हेडगेवार 1910 में जब डॉक्टरी की पढाई के लिए कोलकाता गये तो उस समय वहां देश की नामी क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति से जुड़ गये। 1915 में नागपुर लौटने पर वह कांग्रेस में सक्रिय हो गये और कुछ समय में विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव बन गये. नवंबर 2010 में कानपुर के मोतीझील पार्क में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि संघ संस्थापक हेडगेवार बहुत अच्छे कांग्रेस कार्यकर्ता थे और उन्होंने कांग्रेस के कहने पर अंग्रेजों से लड़ने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के साथ काम किया था. हेडगेवार कांग्रेस से जुड़े रहे. कांग्रेस के नेताओं के साथ उन्होंने शुरुआत से काम किया था. मध्यप्रांत में प्रांतीय कांग्रेस ने 'संकल्प' पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया तो इस पत्रिका के प्रसार आदि का जिम्मा हेडगेवार को दिया गया. देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान भी डॉ. हेडगेवार ने अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान मराठी मध्य प्रांत की तरफ से डॉ. हेडगेवार की अगुवाई में बनाई गई असहयोग आंदोलन समिति ने कार्यकर्ताओं को आंदोलन के प्रति जागृत करने का काम किया. मराठी मध्यप्रांत में यह आंदोलन काफी सफल भी रहा था. वर्ष 1921 में आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने दमन की नीति अपनाते हुए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करना शुरू किया. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भी अनेक मुकदमों में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि जब वे जेल से बाहर निकले तब तक महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना तय हुआ था. कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना था. नागपुर कांग्रेस समिति के संयुक्त सचिव होने की हैसियत से डॉ. हेडगेवार ने डॉ. अरविंद घोष का नाम प्रस्तावित करने का विचार रखा, लेकिन अरविंद तब तक पॉन्डिचेरी में संन्यासी का जीवन अपना चुके थे. उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया. नागपुर में के कांग्रेस अधिवेशन के लिए बनाई गई स्वागत समिति में भी डॉ. हेडगेवार की महत्वपूर्ण भूमिका तय थी. अलग—अलग विचारों, अलग—अलग जातियों, भेदभावों से भरा पड़ा था हिंदू समाज, अपितु आज भी है। लेकिन अब हिंदू समाज जरूर जागरूक हुआ है, जिसका श्रेय डॉ. हेडगेवार को ही जाता है। क्योंकि एकता के एक सूत्र में पिरोने का जो शुभ कार्य डॉ. हेडगेवार ने किया है, वह वंदनीय है। डॉ. हेडगेवार का एक ही लक्ष्य था कि हिंदू आपस में मिलजुलकर रहें, जैसे हमारे पूर्वज वैदिक युग में रहा करते थे, और भारत में रहने वाले सभी हिंदू हैं, पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन मातृभूमि एक है, इसलिये सभी को भारत माता और वंदे मातरम बोलने में संकोच नहीं होना चाहिए, बल्कि गर्व होना चाहिए। डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत 27 सितम्बर विशयदशमी के दिन 1925 में 17 लोगों के साथ हेडगेवार निवास से की. कुछ समय बाद संघ के शाखा की शुरुआत नागपुर में हुई. डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व को समग्रता व संपूर्णता में ही समझा जा सकता है. उनमें देश की स्वाधीनता के लिए एक विशेष आग्रह, दृष्टिकोण और दर्शन बाल्यकाल से ही सक्रिय थे. ऐसा लगता है कि जन्म से ही वे इस देश से, यहां की संस्कृति व परंपराओं से परिचित थे. यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने संघ की स्थापना देश की स्वाधीनता तथा इसे परम वैभव पर पहुंचाने के उद्देश्य से ही की थी. इस कार्य के लिए उन्होंने समाज को वैसी ही दृष्टि दी जैसी गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी थी. हेडगेवार ने देश को उसके स्वरूप का बोध कराया. उन्होंने उस समय भी पूर्ण स्वाधीनता और पूंजीवाद से मुक्ति का विषय रखा था, जबकि माना जाता है कि कांग्रेस में वैसी कोई सोच नहीं थी. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ शाखा के माध्यम से राष्ट्र भक्तों की फौज खड़ी की. उन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिए नए तौर-तरीके विकसित किए. इन्होंने सारी जिन्दगी लोगों को यही बताने का प्रयास किया कि नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें नए तरीकों से काम करना पड़ेगा, स्वयं को बदलना होगा. डॉ. साहब 1925 से 1940 तक, यानि मृत्यु पर्यन्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे, 21 जून, 1940 को नागपुर में निधन हुआ। इनकी समाधि रेशम बाग नागपुर में स्थित है, जहाँ इनका अंत्येष्टि संस्कार हुआ था।

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