दु:ख और चिंता को न पकड़ें
बोधकथा : एक विद्वान लोगों को जीवन निर्माण के लिए आवश्यक बातें बता रहा था। एकाएक उस व्यक्ति ने अपने हाथ में एक छोटी सी पुस्तक ली और लोगों से उसके वजन के बारे में पूछा कि इसमें कितना वजन होगा। किसी ने दो सौ ग्राम तो किसी ने तीन सौ ग्राम बताया। उस व्यक्ति ने आगे कहा कि यदि मैं इसे एक मिनट तक सीधा हाथ करके पकड़े रखूं तो क्या मेरे हाथ में कुछ दर्द होगा? वे बोले-बिल्कुल नहीं। यदि मैं इस पुस्तक को एक घण्टे तक पकड़े रखूं तो क्या मेरे हाथ में दर्द होगा! वे बोले हल्का-हल्का दर्द होगा। और यदि मैं इस पुस्तक को एक दिन तक सीधा हाथ करके पकड़े रखूं तो क्या मेरे हाथ में कुछ दर्द होगा! वे बोले-बहुत दर्द होने लगेगा हाथ में। उसने आगे कहा कि यदि मैं इस पुस्तक को लगातार पकड़े ही रखूं तो मेरे हाथ की क्या हालत होगी? सारे लोग एक साथ बोले-आपके हाथ में दर्द ही नहीं, लकवा मार जायेगा और हाथ में ही क्या, शरीर के एक हिस्से में लकवा मार जायेगा। इसके बाद उस व्यक्ति ने आगे कहा कि यही स्थिति दुख और चिन्ता की है। यदि हम किसी चिंता या दुख को हमारे मन-मस्तिष्क से तुरंत मुक्त कर देंगे, उसे छोड़ देंगे तो हमारा मन-मस्तिष्क बिल्कुल सही रहेगा, उस पर दुख का प्रभाव बिल्कुल भी नहीं होगा और यदि उसे लम्बे समय तक अपने मन-मस्तिष्क में पकड़े ही रहेंगे तो मन व मस्तिष्क ही नहीं, हमारा शरीर और जीवन ही लकवाग्रस्त हो जायेंगे।
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