नवरात्रि के नौ दिन और दुर्गा के नौ रूप
ज्योतिष। पितृ पक्ष समाप्त होते ही 7 अक्टूबर 2021 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हुई। शरदीय नवरात्रि का प्रारंभ आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से होता है। इस दिन ही कलश स्थापना या घटस्थापना होता है और नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में किस दिन कौन सा रूप मां दुर्गा का होता है-
शैलपुत्री : इस प्रथम दिन के उपासना में साधक या योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थिर करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारम्भ होता हैं। शैल का अर्थ पर्वत यानी पर्वतराज हिमालय की पुत्री कहा जाता है।
ब्रह्मचारिणी : ब्रह्म का अर्थ तपस्या है यानी तप की चारिणी के रूप में ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इनकी उपासना मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार संयम की वृद्धि करने वाली होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी साधक का मन मंतव्य पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थिर होता है, इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और शक्ति प्राप्त करता है।
चन्द्रघण्टा : इनका यह स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपुरकचक्र’ में प्रविष्ट होता है। उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुंगधियों व विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती है तब ये क्षण साधक के लिए अत्यन्त सावधान रहने के होते हैं। मां चन्द्रघण्टा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना से साधक में वीरता-निर्भरता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का भी विकास होता हैं। साधक को देखकर लोग शान्ति और सुख का अनुभव करते हैं।
कुष्माण्डा : अपनी हल्की हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। मां की उपासना से समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते है। इनकी भांति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मनुष्य को व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतरू अपनी लौकिक-परलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता : इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र के अवस्थित होता है। पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त ब्रह्म क्रियाओं एवं चित्तव्यत्तियों का लोप हो जाता है। यह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होता है। मां स्कन्दमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। उसे परम शान्ति व सुख का अनुभव होने लगता है।
कात्यायनी : इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। इनकी उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
कालरात्रि : इस दिन साधक का मन ‘सहस्त्राएं’ चक्र में स्थित होता है। उनके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वारा खुलने लगता है। ये ग्रह-बंधाओं को भी दूर करने वाली है। इनके उपासक को अग्निभेद, जलभय, जन्तु, श्णुभय, रात्रि भय आदि कभी नहीं होती हैं। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय मुक्त हो जाता है। मां कालरात्रि के स्वरूप विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए।
महारात्रि : इनकी उपासना से आर्तजनों के उन सम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। ये मनुष्यों की वृत्तियों को सत की ओर प्ररित करके असत का विनाश करती है।
सिद्धिदात्री : इनकी साधना से साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता। ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उसमें आ जाता है। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां की कृपा से विषय शून्य हो जाता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें