शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी में नहाने से मिलती है असीम उर्जा
ज्योतिष। इस वर्ष यानि 2021 में शरद पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर 2021 को शाम 7:5:42 बजे से शुरू होकर20 अक्टूबर 2021 की रात 08:28:56 बजे समाप्त होगी। शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्त्व है। महालक्ष्मी पूजन एवं स्रोत पाठ से धन धान्य की प्राप्ति की जा सकती है। श्री सूक्त और लक्ष्मी सूक्त के साथ विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने वाले पर लक्ष्मी जी की विशेष कृपा होती है।
मां लक्ष्मी का मंत्र
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
कुबेर का मंत्र
ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं और कोजागर पूर्णिमा भी। शरद ऋतु में मौसम साफ़ रहता है। आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल के गुबार। पूरे वर्ष भर में केवल अश्विन मास की पूर्णिमा का चंद्रमा ही षोडस यानि 16 कलाओं का होता है। इस पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है। इस रात्रि में भ्रमण करना और चन्द्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज-बालाओं के साथ वृन्दावन में महारास किया था। पूरी रात भर अगर जागरण कर सकते हैं तो बहुत ही उत्तम होगा। भगवान शिव का रुद्राभिषेक करवाएं, उनको खीर का भोग लगाएं। इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना सेहत के लिए शुभ होता है। एक आध मिनट आंखें पटपटाएं। कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लें। इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी। ऐसा आसन बिछाएं जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में। बता दें शरद पूर्णिमा अश्विन मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है। शरद पूर्णिमा की कथा इस प्रकार है—एक बार देवराज इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर जा रहे थे। रास्ते में दुर्वासा मुनि मिले। मुनि ने अपने गले में पड़ी माला निकालकर इन्द्र के ऊपर फेंक दी। जिसे इन्द्र ने ऐरावत हाथी को पहना दिया। तीव्र गंध से प्रभावित होकर ऐरावत हाथी ने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दी। यह देखकर दुर्वासा मुनि ने इन्द्र को शाप देते हुए कहा,’इन्द्र! ऐश्वर्य के घमंड में तुमने मेरी दी हुई माला का आदर नहीं किया। यह माला नहीं, लक्ष्मी का धाम थी। इसलिए तुम्हारे अधिकार में स्थित तीनों लोकों की लक्ष्मी शीघ्र ही अदृश्य हो जाएगी।’ महर्षि दुर्वासा के शाप से त्रिलोकी श्रीहीन हो गयीं और इन्द्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में प्रविष्ट हो गईं। देवताओं की प्रार्थना से जब वे प्रकट हुईं, तब उनका सभी देवता, ऋषि-मुनियों ने अभिषेक किया। देवी महालक्ष्मी की कृपा से सम्पूर्ण विश्व समृद्धशाली और सुख-शान्ति से सम्पन्न हो गया। आकर्षित होकर देवराज इन्द्र ने लक्ष्मी की स्तुति की।
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