विजयदशमी पर श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ने से मिलता है अपार सुख
ज्योतिष। दशहरा का त्योहार दीपावली से ठीक 20 दिन पहले मनाया जाता है। इस साल दशहरा का त्योहार 15 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन चंद्रमा मकर राशि और श्रवण नक्षत्र रहेगा। 15 अक्टूबर 2021 को दोपहर 2 बजकर 2 मिनट से दोपहर 2 बजकर 48 मिनट तक दशहरा पूजन का शुभ समय है। दशमी तिथि 14 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर 15 अक्टूबर की शाम 6 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। पुरुषोत्तम श्री राम ने अधर्म, अत्याचार और अन्याय के प्रतीक रावण का वध करके पृथ्वीवासियों को भयमुक्त किया था और देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध करके धर्म और सत्य की रक्षा की थी। इस दिन भगवान श्री राम, दुर्गाजी, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और हनुमान जी की आराधना करके सभी के लिए मंगल की कामना की जाती है। समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विजयादशमी पर रामायण पाठ, श्री राम रक्षा स्त्रोत, सुंदरकांड आदि का पाठ किया जाना शुभ माना जाता है। विजयदशमी पर्व पर श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ने का विधान है—
धन प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर मह जाही।
जद्यपि तांहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपत्ति विनाहिं बोलाए।
धर्मशील पह जाहिं सुभाएं।।
दरिद्रता मिटाने के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद दवारि के।।
बिस्व भरन पोषण कर जोई।
ताकर नाम भारत अस होई।।
मनोरथ प्राप्ति के लिए
मोर मनोरथु जानहु नीके।
बसउ सदा उर पुर सब ही के।।
इसके अलावा और भी दोहे व चौपाइयां हैं, जो विजयदशमी पर पढ़ा जाता है।
लगे सँवारन सकल सुर वाहन विविध विमान।
होई सगुन मंगल सुभद करहि अपछरा गान।
पवन तनय बल पवन समाना।
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना।।
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहु।
सो तेहि मिलह न कछु संदेहू।।
गुरु गृह गए पढन रघुराई।
अलप काल विद्या सब आई।।
प्रविसि नगर कीजे सब काजा।
हृदय राखि कौसलपुर राजा।।
तब जनक पाई बशिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारिके।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुंअरि लई हंकारि के।।
भगत बछल प्रभुकृपा निधाना।
श्री विश्वास प्रगटे भगवाना।।
दीनदयाल विरुद संभारी।
हरउ नाथ मम संकट भारी।।
प्रनवउँ पवन कुमार खल बन पावक ज्ञान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
रामकृपा अवरेब सुधारी।
विबुध धारि भई गुनद गोहारी।।
धन प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर मह जाही।
जद्यपि तांहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपत्ति विनाहिं बोलाए।
धर्मशील पह जाहिं सुभाएं।।
दरिद्रता मिटाने के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद दवारि के।।
बिस्व भरन पोषण कर जोई।
ताकर नाम भारत अस होई।।
मनोरथ प्राप्ति के लिए
मोर मनोरथु जानहु नीके।
बसउ सदा उर पुर सब ही के।।
इसके अलावा और भी दोहे व चौपाइयां हैं, जो विजयदशमी पर पढ़ा जाता है।
लगे सँवारन सकल सुर वाहन विविध विमान।
होई सगुन मंगल सुभद करहि अपछरा गान।
पवन तनय बल पवन समाना।
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना।।
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहु।
सो तेहि मिलह न कछु संदेहू।।
गुरु गृह गए पढन रघुराई।
अलप काल विद्या सब आई।।
प्रविसि नगर कीजे सब काजा।
हृदय राखि कौसलपुर राजा।।
तब जनक पाई बशिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारिके।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुंअरि लई हंकारि के।।
भगत बछल प्रभुकृपा निधाना।
श्री विश्वास प्रगटे भगवाना।।
दीनदयाल विरुद संभारी।
हरउ नाथ मम संकट भारी।।
प्रनवउँ पवन कुमार खल बन पावक ज्ञान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
रामकृपा अवरेब सुधारी।
विबुध धारि भई गुनद गोहारी।।
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