व्यर्थ का मोह
बोध कथा। एक बार की बात है, गुरू ने अपने शिष्य को समझाते हुये कहा कि एक आम का वृक्ष था। जिसमें ढेर सारे आम पके हुए थे, एक दिन उस पेड़ का मालिक आया और पेड़ पर चढ़कर सारे आम तोड़ने लगा। लेकिन एक आम का फल वृक्ष से दूर होने का मोह छोड़ नहीं पाया और वही कहीं पत्तों की आड़ में छिप गया। उस पेड़ के मालिक को जब लगा कि उसने सारे आम तोड़ लिया है तब वह नीचे उतर गया और वहां से चला गया, यह सब वह छिपा हुआ आम देख रहा था। फिर दूसरे दिन जब उस आम ने देखा के उसके साथ के सारे आम तो जा चुके हैं केवल उसी का मोह उसे पेड़ से अलग होने नहीं दे रहा है। उसे अपने मित्र आमों की याद सताने लगी। वह बार-बार सोचता कि नीचे कूद जाऊं और अपने दोस्तों से जा मिलूं परन्तु उसे पेड़ का मोह अपनी ओर खींचने लगता, आम रोजाना इसी सोच में डूबा रहता। चिंता का यह कीड़ा उसे लगातार काटे जा रहा था, जल्द ही वह सूखने लगा और एक दिन वह गुठली और छिलका के रूप में ही बस रह गया, उसके अंदर का सारा रस समाप्त हो गया था। अब अपना आकर्षण खो देने के कारण उसके तरफ कोई देखता भी नहीं था वह बहुत पछताने लगा कि संसार का कोई सेवा नहीं कर सका व वह लोगों का काम भी नहीं आ सका, आखिरकार एक दिन तेज हवा का झोंका आया और वह डाली टूटकर नीचे गिर गया। कथा का सन्देश यह है कि जरुरत से ज्यादा मोह आपको व्यर्थ बना सकता है, कहावत है कि कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना अति आवश्यक होता है। यानि जब आत्मा शरीर को छोड़ेगी तभी नये जीवन का निर्माण होगा, व्यर्थ के मोह में नहीं पड़ना चाहिए।
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