नवरात्रि में कन्या पूजन से मिलता है सुख, समृद्धि
आस्था। आज यानि सात अक्टूबर 2021 को शरदीय नवरात्रि शुरू हुआ। इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की गयी। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मां दुर्गा के श्रद्धालुओं ने मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की, दुर्गा मंदिरों पर काफी भीड़ देखी गयी। शास्त्रों के अनुसार शक्ति की पूजा का सम्बन्ध शिव से है। शैव शक्तियां ही दुर्गा नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा या चण्डी के अनुष्ठान में नवदुर्गा (नव कन्याओं) का पूजन भी प्रचलित है। मंत्र महोदधि के अनुसार दो से नौ वर्ष तक की कुमारी बालिकाओं के पूजन का विधान है। अक्सर श्रद्धालु पंडितों से पूछते हैं कि भगवान शंकर को कौन सा पुष्प पसंद है या भगवान शंकर कौन से पुष्प अर्पित करने से प्रसन्न होते हैं। तो शास्त्रों में स्पष्ट वर्णित है कि जो पुष्प मां भगवती को पसंद है वही शंकर जी को पंसद है। शास्त्रों में कन्याओं के बारे में वर्णित है-1 वर्ष की कन्या सन्ध्या, 2 वर्ष की कन्या सरस्वती, 3 वर्ष की कन्या त्रिधामूर्ति, 4 वर्ष की कन्या कालिका, 5 वर्ष की कन्यासुभगा, 6 वर्ष की कन्या उमा, 7 वर्ष की कन्या मालिनी, 8 वर्ष की कन्या कुलजा, 9 वर्ष की कन्या कालसन्दभा, 10 वर्ष की कन्या अपराजिता, 11 वर्ष की कन्या रूद्राणी, 12 वर्ष की कन्या भैरवी, 13 वर्ष की कन्या लक्ष्मी, 14 वर्ष की कन्या महालक्ष्मी, 15 वर्ष की कन्या क्षेत्रशा, 16 वर्ष की कन्या अम्बिका अर्थात् क्रमशः प्रतिपदा से पूर्णिमा तक वृद्धि भेद पूजन करना चाहिए। कुमारी (5 से 12 वर्ष तक) कुलजा (8 से 13 वर्ष तक) युवती (10 से 16 वर्ष तक) देवता रूप में इनका चिन्तन अभीष्ट है। नवरात्रि में 6 से 9 साल की कन्या का पूजन अति फलदायक बताया गया है। कुमारी लक्षण पूजन के लिए कुमारी को 11 दोषों से विहीन होना जरूरी है जैसे- हीनाड्गी, अधिकांड्गी, घृणित, चमरीगादि, नेत्र दोष, कुरूपा, कुबड़ी, अधिक रोम से युक्त तथा दासी उत्पन्न। कुमारी पूजन में किसी भी प्रकार का जाति भेद वर्जित है। सम्भवतः इसी कारण चातुर्वर्ण के आधार पर कन्याओं के पूजन में इस प्रकार है। ब्राह्मण कुमारी, मनोरथ सिद्धि के लिए क्षत्रिय कुमारी यश प्राप्ति के लिए, वैश्य कुमारी धन के लिए तथा शुद्र कुमारी के पूजन पुत्र की कामना के लिए किया जाता है।
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