लोकप्रिय होने के बावजूद मोहनदास करमचंद गांधी की खूब होती है आलोचना
विचार। आज यानि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती है, गांधी यानि कि मोहनदास करमचंद गांधी। गांधी के जन्मदिन पर देश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये। गांधी ने देश की स्वतंत्रता में हिस्सा लिया, इसके लिये उनका सदैव आदर रहेगा, लेकिन गांधी नेे अपने पीछे कई ऐसे सवाल छोड़ गये जिसका जवाब न कांग्रेस पार्टी के पास और न ही देशवासियों के इसके बारे में पता है। आज गांधी जयंती पर गांधी के बारे कुछ अहम जानकारियां हैं, जिन्हें देशवासियों को जानना ही चाहिए। गांधी काले आदमी थे और लंदन में रहकर बिना किसी परेशानी के गोरों के साथ पढ़ते, हॉस्टल के एक कमरे में रहते हैं, एक मेस में खाते हैं फिर अचानक ट्रेन में एक साथ सफर करने में फेंक दिए जाते हैं? फिर गांधी उन्हीं गोरों की सेना में सार्जेंट मेजर बनते हैं और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश बोर वार में आपकी तैनाती एम्बुलेंस यूनिट में होती है, जहां गांधी लड़ाई में गोरों का कालों के विरुद्ध साथ देते हैं। मिलिट्री यूनिफॉर्म में आपकी की फोटो पूरे इंटरनेट उपलब्ध है। सार्जेंट मेजर गांधी लिखकर सर्च कर लीजिए। फिर गांधी को अचानक 46 की उम्र में 1915 में देशप्रेम जागा और मिलिट्री यूनिफार्म उतारकर बैरिस्टर घोषित कर दिया गया। (रानी लक्ष्मी बाई, खुदीराम बोस, बिस्मिल, भगत सिंह और आजाद जैसे अनेक देशभक्तों की 25 की उम्र आते आते तक शहादत हो गई थी। फिर गांधी को महात्मा बुद्ध की तरह शांति, अहिंसा का दूत बनाकर दक्षिण अफ्रीका से सीधे चंपारण भेज दिया जाता है, जहाँ नील उगाने वाले किसानों के आंदोलन को गांधी हैक कर लेते हैं। हिंसक होते आंदोलन को अहिंसा शांति के फुस्स आंदोलन में बदल देते हैं और गांधी महात्मा बुद्ध की तरह दिन में एक धोती लपेट कर शांति, अहिंसा के नाम पर भारतीयों के आजादी के लिये होने वाले हर उग्र आंदोलन की हवा निकाल कर उसे बिना किसी परिणाम के अचानक समाप्त कर देते थे और अंग्रेज चैन की सांस लेते रहते हैं। गांधी नंगा फकीर बनकर अपने साथ अपनी बेटी भतीजी के अलावा अनेक औरतों के साथ खुद पर परीक्षण करने के लिये नंगे सोते थे और अपने सेल्फ-कंट्रोल को टेस्ट करते हैं। कौन सा महात्मा ऐसा करता है? (यह अपनी पुस्तक सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने खुद स्वीकार किया है।) गांधी अहिंसा के पुजारी, प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का खुला साथ देते हैं और अपने अहिंसा के सिद्धांतों को दरकिनार करके भारतीयों को कहते हैं सेना में भर्ती हो जाओ और युद्ध करो ताकि ब्रिटिश राज बचा रहे। तब अहिंसा आड़े नहीं आयी? इसी अहिंसा की खातिर नेताजी सुभाषचंद्र बोस का कांगे्रस से इस्तीफा दिला दिया, जब अंग्रेजों की तरफ से लडऩा अहिंसा है तो अपने देश के लिये लडऩा क्यों बुरा था? गांधी दिल्ली के मंदिर में कुरान पढऩे की जिद पूरी करने के लिए पुलिस बुला लेते हैं पर कभी मस्जिद में गीता या रामायण नहीं पढऩे की हिम्मत जुटा पाते। पाकिस्तान को 55 करोड़ और आज के बांग्लादेश जाने 15 किलोमीटर चौड़ा कॉरिडोर जिसके दोनों तरफ 10 किलोमीटर तक केवल मुस्लिम ही जमीन खरीद सकें, उसकी जिद पकडक़र अनशन करने की धमकी देकर ब्लैकमेल करते हैं। यही अनशन आपने पाकिस्तान ना बनने के लिए क्यों नहीं किया? पंजाब, सिंध, केरल में हिंदू मरते रहे, भगत सिंह सूली चढ़ गये, लेकिन गांधी ने अनशन नहीं किए। गांधी हमेशा कहते थे कि ‘अहिंसा परमो धर्म:’ यानि कि अहिंसा हमारा परम धर्म है। गांधी यह अधूरा वाक्य बोलते थे। जबकि पूरी पंक्ति है-
‘अहिंसा परमो धर्म: धर्म हिंसा तथैव च।’
अर्थात् यदि अहिंसा परम धर्म है, तो धर्म के लिए हिंसा भी परम् धर्म है। अहिंसा मनुष्य का परम धर्म
है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है। जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना)। यह है पूरा वैदिक, पौराणिक, शास्त्रिक वाक्य।
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित: । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत
यानि मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात त्याग कभी न करना चाहिए। ऐसे हैं हमारे मूल्य, जो कि गांधी कभी पूरा वाक्य नहीं कहते। इतना ही नहीं, शांति अहिंसा का संदेश महात्मा गांधी का संदेश नहीं था। यह भारत का युगों-युगों का संदेश है। गांधी ने भारत के प्राचीन शान्ति और अहिंसा के आदेश को आगे बढ़ाया। प्रारंभ से देशवासी शांति और अहिंसा के पुजारी रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी ओर से युद्ध नहीं छेड़ा। अपने आप तलवार नहीं उठाई। उनकी कोशिश रही कि सब शांति से निपट जाए। पर जब सामने वाले ने शांति और अहिंसा को मानने वाले की कायरता समझी तो मजबूरी में उन्हें युद्ध करना पड़ा। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों का युग एक था। दोनों युद्ध के विपरीत थे। दोनों ने शांति की बात की। ऐसा नहीं है कि यह भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय में हुआ हो। ये तो आदि काल से चला आया है। यह तो आर्यवृत की संस्कृति है। विरासत है। आज गांधी नहीं बल्कि मोदी युग है। मोदी ने विश्व में भारत की शक्ति और सभ्यता का एहसास कराया है, सभी मोदी का सम्मान करते हैं, बस अपने ही कुछ देशवासी मोदी का विरोध करते हैं, क्योंकि उनकी दुकानें बंद हो गयी हैं, जो भ्रष्टाचार से चलती थीं और भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का सपना टूट चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में देश की बागडोर संभालने के साथ गांधी जयंती के अवसर पर ही स्वच्छता अभियान का शुभारंभ किया। आज पूरा देश महात्मा गांधी को याद कर रहा है। आज सारा संसार एक गेंद के समान छोटा हो गया है, पर दूसरी ओर भाई-भाई में मानसिक खाई चौड़ी होती जा रही है। इस विरोधाभास के कारण पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में बिखराव और तनाव बढ़ रहा है। यदि अहिंसा, शांति और समता की व्यापक प्रतिष्ठा नहीं होगी तो भौतिक सुख-साधनों का विस्तार होने पर भी मानव शांति की नींद नहीं सो सकेगा। अध्यात्म के आचार्यों ने हिंसा और युद्ध की मनोवृत्ति को बदलने के लिए मनोवैज्ञानिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा है- युद्ध करना परम धर्म है, पर सच्चा योद्धा वह है, जो दूसरों से नहीं स्वयं से युद्ध करता है, अपने विकारों और आवेगों पर विजय प्राप्त करता है। जो इस सत्य को आत्मसात कर लेता है, उसके जीवन की सारी दिशाएं बदल जाती हैं। वह अपनी शक्तियों का उपयोग स्व-पर कल्याण के लिए करता है। जबकि एक हिंसक अपनी बुद्धि और शक्ति का उपयोग विनाश और विध्वंस के लिए करता है। होना तो यह चाहिए कि सभी को मिलजुलकर रहना चाहिए, एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए, एकदूसरे के आदर से ही आदर्श समाज की स्थापना हो सकती है। इसके लिये जरूरी है कि सभी ईमानदार बनें, अपनी गलती मानें और अपनी उपस्थिति भी समाज में दर्ज करायें। आज के दौर में समाज को जोडऩे में सबसे महती भूमिका निभा रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा को सभी को जाना चाहिए। संघ के लोग ऐसा दावा करते हैं कि एक बार संघ की शाखा आ गये तो दोबारा फिर आओगे, क्योंकि आत्मीयता और उल्लास का ऐसा वातावरण रहता है शाखाओं पर कि मानव बस इसी के लिए ही भूखा है। आज गांधी जयंती पर देशवासियों से अपील है कि बहरूपियों से सावधान रहें और अपने देश से प्यार करें।
अभिषेक त्रिपाठी
8765587382
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