वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चलाई गयी : मोहन भागवत
जानकारी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा कि इतने वर्षों के बाद अब हम जब परिस्थिति को देखते हैं तो ध्यान में आता है कि जोर से बोलने की आवश्यकता तब थी, सब बोलते तो शायद विभाजन नहीं होता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मंगलवार को वीर सावरकर से जुड़ी कई बड़ी बातें कहीं। मोहन भागवत ने कहा कि देश में आज के समय में वीर सावरकर के बारे में वास्तव में सही जानकारी का अभाव है, यह एक समस्या है। वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चलाई गई, इनकी बदनामी की मुहिम स्वतंत्रता के बाद खूब चली। वीर सावरकर पर लिखी गई पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए सरसंघचालक ने कहा कि वीर सावरकर के बारे में लिखी गईं तीन पुस्तकों के जरिए काफी जानकारी हासिल की जा सकती है। मोहन भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद वीर सावरकर को बदनाम किया गया, इसके बाद स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद को बदनाम करने का नम्बर लगेगा, क्योंकि वीर सावरकर इन तीनों के विचारों से प्रभावित थे। हमारी पूजा विधि अलग-अलग है, लेकिन पूर्वज एक हैं। बंटवारे के बाद पाकिस्तान जाने वालों को वहां प्रतिष्ठा नहीं मिली। हिंदुत्व एक ही है जो सनातन है। हम जानते हैं कि अब 75 साल बाद हिंदुत्व को जोर से बोलने की जरूरत है। वीर सावरकर ने कहा था कि किसी का तुष्टिकरण नहीं होना चाहिए। उदय माहूरकर की लिखी पुस्तक वीर सावरकर: द मैन हू कैन्ड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन के विमोचन के मौके पर सरसंघचालक के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद रहे।
इस दौरान मोहन भागवत ने कहा कि आज मैं एक मजाक कर सकता हूं। राजनाथ सिंह जी को जल्दी जाना है। तैयारी का समय उनके पास नहीं था तो मैंने मेरे मुद्दे उनको बोलने के लिए दे दिए। उनकी अनुमति लेकर मैं मजाक कर रहा हूं। मोहन भागवत ने कहा, 'जैसा बार-बार बताया गया कि सावरकर जी को बदनाम करने की मुहिम और सावरकर जी सामने थे, हिंदुत्व का विचार आज बोलने वाले लोग, उस समय बोलने वाले लोग, सांडर्स सामने था। इनकी बदनामी की मुहिम चली है। स्वतंत्रता के बाद यह मुहिम बहुत तेजी से चली है। असली लक्ष्य क्या है। परमेश्वरन जी ने इसी विषय पर लिखा है कि आज संघ और सावकर पर बड़ी टिप्पणी हो रही है। असली लक्ष्य दूसरा है। अगला नंबर स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद का लगेगा क्योंकि भारत की जो वास्तविक राष्ट्रीयता है उसका प्रथम उद्धोष इन तीनों ने किया। सावरकर जी को लक्ष्य बनाते हुए ऐसा भी लिखा गया है कि इन तीन लोगों के विचारों की वजह से वह ऐसे बने। असल बात है कि लक्ष्य व्यक्ति नहीं है, लक्ष्य भारत की राष्ट्रीयता है, जो पूरी दुनिया को जोड़ने का एक मार्ग उजागर करती है। लोग जुड़ जाएं तो जिनकी दुकानें बंद होंगी उनको लगता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। स्वाभाविक है वो विचार मानवता का ही है। उस मानवता के विचार को ही भारतीय परम्परा की भाषा में धर्म कहा जाता है। धर्म यानी पूजा मानेंगे तो जोड़ता नहीं है। पूजा अलग-अलग हैं। भारतीय भाषा की परम्परा के अर्थ में धर्म का अर्थ वह नहीं है। जोड़ने वाला, ऊपर उठाने वाला, बिखरने ना देने वाला, यह लोक और परलोक में सुख देने वाला, प्रथम, मध्य और अंत तीनों जगह आनंदमय और प्रत्येक के स्वभाव को ध्यान में रखते हुए उसके कर्तव्य का निर्धारणकरण देने वाला शाश्वत तत्व धर्म है। मोहन भागवत ने कहा, यह तो विद्वानों की बात है। यदि इसे आज की भाषा में समझाना है तो हमें यही कहना पड़ेगा कि मानवता या सम्पूर्ण विश्व की एकता। सावरकर जी ने उसका ही प्रतिपादन किया है। उसको अलग शब्द हिंदुत्व देकर प्रतिपादित क्यों किया गया। उसके पहले नहीं किया गया था या हिंदुत्व शब्द का उपयोग करते तो किसी को ऐसा नहीं लगता था कि कुछ अलग बात हो गई। सर सय्यद अहमद खां के बारे में कहा गया कि पाकिस्तान की कल्पना का, मुस्लिम असंतोष का जनक उनको कहा जाता है। उससे पहले की बात है जब वह बैरिस्टर बने तो लाहौर में आर्य सभा की ओर से उनका अभिनंदन हुआ। भाषण उपलब्ध है। परिचयकर्ता ने उनका परिचय दिया। कहा कि हिंदुओं में बहुत बैरिस्टर हो गए हैं, मुसलमानों में यह पहले हैं इसलिए इनका अभिनंदन किया जा रहा है। उस पर जो उन्होंने भाषण दिया, उन्होंने कहा कि मुझे बड़ा दुख हुआ कि हमारे लिए अलग शब्द का प्रयोग किया गया। वह हमारी पूजा का निर्देश करने वाला शब्द है, हमने इस्लाम से पूजा ली तो क्या हुआ हम भारत माता के पुत्र नहीं हैं क्या, हमको आप हिंदू नहीं मानते हैं क्या।' मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय जनमानस की यह स्थिति थी। कट्टरपन की हवाएं चलीं, इतिहास में यह पहली बार नहीं हुआ है। इतिहास में जब दाराशिकोह हुए, अकबर हुए तो उसके बाद औरंगजेब भी हुआ जिसने चक्का उल्टा घुमाया। जब माहुरकर जी कहते हैं कि उनका नाम नहीं होना चाहिए, दाराशिकोह का होना चाहिए तो मैं माहुरकर जी का सौ प्रतिशत समर्थन करता हूं। हमारे यहां हाकिम खां सूरी भी हुए, इब्राहिम खां गारदी भी हो गए, हसन खां मेवाती भी हो गए। सेना के वीरों में सबके नाम हैं। अशफाकउल्लाह खां जैसे क्रांतिकारी हो गए। उनसे पूछा गया एक बार कि आपकी इच्छा क्या होगी मरते वक्त तो उन्होंने कहा कि मैं मुसलमान हूं, मैं पुनर्जन्म में यकीन नहीं करता हूं। मेरे परम मित्र राम प्रसाद बिस्मिल हैं, वह विश्वास करते हैं। अगर उनकी बात सही है तो खुदा मुझसे जरूर पूछेगा कि अगला जन्म कहां लेना है।'
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