दूसरों का भला करें
बोधकथा। एक बार की बात है-राजा ने कैदी को मौत की सजा सुनाई। सजा सुनकर कैदी राजा को गालियां देने लगा। कैदी दरबार के आखिरी कोने में खड़ा था। इसलिए उसकी गालियां बादशाह को सुनाई नहीं पड़ रहीं थीं। इसलिए राजा ने अपने सलाहकार से पूछा कि वह क्या कह रहा है? इस पर सलाहकार ने बताया कि महाराज कैदी कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं जो अपने क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं। यह सुनकर बादशाह को दया आ गई और उसने कैदी को माफ कर दिया, लेकिन दरबारियों में एक व्यक्ति था जो सलाहकार से जलता था। उसने कहा कि महाराज, वजीर ने आपको गलत बताया है, यह व्यक्ति आपको गंदी-गंदी गालियां दे रहा है, आप इसको माफ मत करिए, उसकी बात सुनकर बादशाह गुस्सा हो गये और दरबारी से बोला- मुझे सलाहकार की बात ही सही लगी। क्योंकि इसने झूठ भी बोला है तो किसी की भलाई के लिए। सलाहकार के अंदर भलाई करने की हिम्मत तो है। जबकि तुम दरबार में रहने के योग्य नहीं हो, तुम्हें तुरंत बेदखल किया जाता है। यानि कि जो दूसरों की भलाई के लिये सोचता है, उसका अपने आप भला हो जाता है।
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