अद्भुत है नागों की कथा
आस्था। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाने की परम्परा है। इस बार यानि 2022 में नागपंचमी 2 अगस्त दिन मंगलवार को है। नागपंचमी के दिन श्रद्धालु नाग प्रजाति की विधि विधान से पूजा करते हैं। नागों को भी देवता माना गया है। नागों की बड़ी रुचिकर कथा प्रचलित है-
शेषनाग : कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थीं और दोनों कश्यप ऋषि को ब्याही थीं। एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों पत्नियों से वरदान मांगने को कहा था। कद्रू ने एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की मां बनने का वरदान मांगा और विनता ने केवल दो पुत्रों की मां बनने का ही वरदान मांगा। हालांकि, विनता ने कश्यप ऋषि से कहा था कि उनके दोनों पुत्र कदू्र के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली, पराक्रमी और सुन्दर हों। कद्रू ने 1000 अंडे दिए और विनता ने केवल दो अंडे दिए। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ। पुराणों में कई नागों खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का काफी वर्णन मिलता है। कदू्र के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे, इनका एक नाम अनन्त भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता व भाइयों ने मिलकर विनता के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोडक़र गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी शुरू कर दी, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी। ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है। अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। ब्रह्माजी की कृपा से शेषनाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। शास्त्रों के अनुसार क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित हैं। मान्यता है कि श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम दोनों ही शेषनाग के अवतार माने जाते हैं।
तक्षक नाग : तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। महाभारत के अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डंसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गए। जैसे ही यज्ञ करने वाले ब्राह्मण ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
वासुकि नाग : वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के गले में जो नाग लिपटा है वह वासुकि नाग ही है। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का शाप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा। तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कहकर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की रस्सी बनाई गई थी। इसके अलावा वह युद्ध जिसमें भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था, युद्ध के समय वासुकि शिवधनुष की डोर बने थे। यही सब कारण है कि हमारे देश में नागों की पूजा की जाती है। आधुनिक युग में सांपों का वैज्ञानिक महत्व भी है।
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