पंडित जी के फटे और गंदे कपड़े
बोधकथा। एक पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था लेकिन वह बहुत ग़रीब थे। एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे और भिक्षा मांगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवनयापन करते थे। एक बार पंडित जी एक गांव में भिक्षा मांगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफी जगह से फट भी गये थे। पंडित जी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घ्रणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया, बोला-पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है। पंडित जी दुखी मन से वापस चले आये। पंडित जी जब अपने घर वापस लौट रहा थे तो किसी अमीर आदमी की नजर पंडित जी के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दिये। अगले दिन पंडित फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा माँगने गया। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अंदर बुलाया और बड़े आदर के साथ थाली में बहुत सारे व्यंजन खाने को दिए। पंडित जी ने एक भी टुकड़ा अपने मुंह में नहीं डाला और सारा खाना धीरे धीरे अपने कपड़ों पर डालने लगे और बोले-ले खा और खा। व्यक्ति ये सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था, आख़िर उसने पूछ ही लिया कि-पंडित जी आप यह क्या कर रहे हैं सारा खाना अपने कपड़ों पर क्यों डाल रहे हैं? पंडित जी ने बहुत शानदार उत्तर देते हुये कहा कि यह खाना मुझे नहीं बल्कि इन कपड़ों को दिया है इसीलिए मैं ये खाना इन कपड़ों को ही खिला रहा हूं, कल जब मैं गंदे कपड़ों में तुम्हारे घर आया तो तुमने धक्के मारकर घर से निकाल दिया और आज तुमने मुझे साफ और नये कपड़ों में देखकर अच्छा खाना पेश किया। असल में तुमने ये खाना मुझे नहीं, इन कपड़ों को ही दिया है, वह व्यक्ति यह सुनकर बहुत लज्जित हुआ।
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