बेहद शक्तिशाली होते हैं 'मंत्र'

धर्म। मंत्रों का मंत्र महामंत्र है गायत्री मंत्र। यह प्रथम इसलिए कि विश्व का प्रथम वेद ऋग्वेद की शुरुआत ही इस मंत्र से होती है। माना जाता है कि भृगु ऋषि ने इस मंत्र की रचना की है। यह मंत्र इस प्रकार है- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। वैसे मंत्र तों कई हैं, लेकिन मंत्रोच्चार निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
- वाचिक जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है, अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए।
- उपाशु जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता, तो वह उपांशु जप कहलाता है। शां‍‍‍ति और पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु रीति से मंत्र को जपना चाहिए।
- मानस जप सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है और जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को और एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है तो, वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है, मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए।

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