श्रावणी पूर्णिमा को जनेऊ धारण करने का उत्तम समय


 

आस्था। सावन माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यानि 2022 में सावन पूर्णिमा 11 अगस्त को है। कुल जानकार 12 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने की सलाह दे रहे हैं। शास्त्रों के अनुसार श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेते हैं और पुराने जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ धारण करते हैं। पंडित कामता प्रसाद मिश्र बताते हैं कि सनातन धर्म में विवाह और मुंडन जैसे कुल 16 संस्कार होते हैं, इन्हीं में जनेऊ या यज्ञोपवीत भी एक संस्कार है। यह एक ऐसा पवित्र सूत होता है, जिसे कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। जनेऊ में तीन-सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक, देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक, सत्व, रज और तम के प्रतीक होते हैं। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक हैं तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमें एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। यानि हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुनें। जनेऊ बदलने के लिये वर्ष भर में श्रावण पूर्णिमा का दिन सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि जनेऊ धारण करने से शरीर शुद्ध व पवित्र रहता है और व्यक्ति जीवनशैली अनुशासित रहता है। जनेऊ धारण करने से स्मरण शक्ति तेज होती है, इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का जनेऊ संस्कार कराने की परम्परा है।
जनेऊ धारण करने का मंत्र
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र:
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।

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