निरुत्तर रह गये मालवीय जी
बोधकथा : मदनमोहन मालवीय एक सेठ के पास दान मांगने गये। सेठ ने मालवीय जी को ससम्मान बैठाया और आने का प्रयोजन पूछते हुए सेवा पूछी। निकटस्थ सेठ का एक छोटा बच्चा हाथ में दियासलाई लिए हुए बैठा था। उसने दियासलाई से एक तीली निकाली और एक छोटी-सी लकड़ी को जला दिया। सेठ ने बच्चे को चांटा लगाया। मालवीय जी को यह अच्छा नहीं लगा। वे यह कहते हुए उठकर जाने लगे—सेठ जी! बच्चे के द्वारा एक तीली जला देने पर चांटा मार देने वाला कृपण व्यक्ति भला क्या दान देगा? सेठ बोला—भद्रपुरुष, सम्भवत: आप नहीं जानते। इसका कारण, मैं जानता हूं। अभी-अभी मैं पचास हज़ार का बैंक चैक दान स्वरूप आपको दे रहा हूं, वह पाई-पाई जुड़कर बना है, न कि व्यर्थ में बच्चे द्वारा जला डाली दियासलाई की तीली की तरह। निष्प्रयोजन पाईभर नुकसान भी मुझे असह्य है। सेठ जी ने मालवीय जी को पचास हज़ार का चेक थमाया तो मालवीय जी सेठ के प्रति पूर्वाग्रह बनाकर आश्चर्यचकित भी थे और शर्मिंदा भी।
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