एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हैं हिंदी
विचार : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस के अवसर पर एक-देश, एक-भाषा की वकालत की, इसके बाद विवाद शुरू हो गया। कमल हसन ने विरोध करते हुए कहा कि हिंदी बोलने के लिए कोई शाह या सुल्तान मजबूर नहीं कर सकता। अमित शाह ने कहा कि सबसे ज्यादा बोली जाने वाली हिंदी ही देश को एकता की डोर में बांधने और विश्व में भारत की पहचान बनाने का काम कर सकती है। शाह सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष होने के साथ केंद्र सरकार के सर्वाधिक ताकतवर मंत्रियों में से एक हैं, लिहाजा उनके बयान को केंद्र सरकार की मंशा की अभिव्यक्ति के रूप में लिया गया, नतीजतन दक्षिण के राज्यों से तत्काल इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। बंगाल भी पीछे नहीं रहा और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर आपत्ति जताई। विपक्षी दलों कांग्रेस और सीपीआई ने भी अमित शाह के बयान की आलोचना की। भारत जैसे बहुभाषिक देश में भाषा का मामला बेहद संवेदनशील रहा है। हमारे संविधान निर्माताओं को इसका अहसास था, इसलिए उन्होंने हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा तो दिया लेकिन अंग्रेजी के उपयोग का भी प्रावधान रखा। इसके अलावा राज्यों को इस मामले में छूट दी। अनुच्छेद 346 और 347 में कहा गया है कि राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा राज्य में प्रयोग की जाने वाली किसी भी एक या अधिक भाषाओं या हिंदी को राज्य में सभी या किसी भी राजकीय उद्देश्यों में उपयोग के लिए अपना सकता है। और जब तक कि राज्य का विधान मंडल कानून नहीं बना लेता, तब तक राज्य में ऐसे राजकीय उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का उपयोग उसी प्रकार जारी रहेगा जैसा कि इस संविधान के लागू होने से पहले किया जा रहा था। जाहिर है यह व्यवस्था गैर हिंदी राज्यों की सुविधा और भावनाओं को देखकर की गई थी। भारत में हिंदी की तरह अनेक भाषाएं हैं, जो बेहद समृद्ध हैं।
संविधान ने भी 22 भाषाओं को मान्यता दी है। भाषा के साथ समाज अपना एक रिश्ता तय करता है। पिछले कुछ समय से भारतीयों ने अंग्रेजी को बढ़-चढ़कर अपनाया है क्योंकि यह रोजी-रोजगार और नई तकनीक की भाषा है। अंग्रेजी किसी सरकारी निर्देश से आगे नहीं बढ़ रही है। समाज ने उसकी जरूरत महसूस की इसलिए वह आगे बढ़ रही है। रही हिंदी की बात तो वह देश भर में एक मजबूत संपर्क भाषा के रूप में विकसित हुई है। बिना किसी हो-हंगामे के अहिंदीभाषी क्षेत्रों के लोग हिंदी सीख रहे हैं और इसका उपयोग भी कर रहे हैं। आज देश में 52 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2001 से 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों के समूह में 10 करोड़ नए लोग जुड़े हैं। ऐसा किसी सरकार के दबाव में या किसी राजनीतिक दल के अभियान से नहीं बल्कि आम लोगों के खुलेपन और सामान्य व्यावसायिक व शैक्षिक गतिविधियों की बदौलत संभव हुआ है। इसी तरह हिंदी भाषा को भी लोगों को सीखना चाहिए, हिंदी ही एकता की डोर में बांध सकती है, इसलिये गृहमंत्री अमित शाह के बयान पर हो—हल्ला करना, अपनी रोटियां सेंकने जैसा है।
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संविधान ने भी 22 भाषाओं को मान्यता दी है। भाषा के साथ समाज अपना एक रिश्ता तय करता है। पिछले कुछ समय से भारतीयों ने अंग्रेजी को बढ़-चढ़कर अपनाया है क्योंकि यह रोजी-रोजगार और नई तकनीक की भाषा है। अंग्रेजी किसी सरकारी निर्देश से आगे नहीं बढ़ रही है। समाज ने उसकी जरूरत महसूस की इसलिए वह आगे बढ़ रही है। रही हिंदी की बात तो वह देश भर में एक मजबूत संपर्क भाषा के रूप में विकसित हुई है। बिना किसी हो-हंगामे के अहिंदीभाषी क्षेत्रों के लोग हिंदी सीख रहे हैं और इसका उपयोग भी कर रहे हैं। आज देश में 52 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2001 से 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों के समूह में 10 करोड़ नए लोग जुड़े हैं। ऐसा किसी सरकार के दबाव में या किसी राजनीतिक दल के अभियान से नहीं बल्कि आम लोगों के खुलेपन और सामान्य व्यावसायिक व शैक्षिक गतिविधियों की बदौलत संभव हुआ है। इसी तरह हिंदी भाषा को भी लोगों को सीखना चाहिए, हिंदी ही एकता की डोर में बांध सकती है, इसलिये गृहमंत्री अमित शाह के बयान पर हो—हल्ला करना, अपनी रोटियां सेंकने जैसा है।
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