ज्ञान का आदर
बोधकथा : मुगल शासक शाहजहां के दौर में संस्कृति और विज्ञान से जुड़े शास्त्रार्थ हुआ करते थे। एक बार शास्त्रार्थ का आयोजन करवाकर शाहजहां ने घोषणा की कि जो भी इस शास्त्रार्थ में जीतेगा उसे पुरस्कृत किया जाएगा और हारने वाले को जेल की सज़ा काटनी होगी।
शास्त्रार्थ के लिए देश के अलग-अलग कोने से पंडित, मौलवी और विद्वान आए। शास्त्रार्थ कई दिन तक चला। पंडितों को हर बार हार का सामना करना पड़ा। सभी को सज़ा के तौर पर जेल भेजा गया। एक दिन की मोहलत देकर शाहजहां ने यह घोषणा कर दी कि अगर कोई हिन्दू विद्वान बचा है तो वह सामने आए अन्यथा मुसलमानों को विजयी घोषित कर दिया जाएगा। उस समय काशी में महापंडित महाज्ञानी जगन्नाथ मिश्र शाहजहां के महल पहुंचे और उनसे शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाने को कहा। मौलवियों और विद्वानों के बीच बैठकर जगन्न्नाथ मिश्र ने शास्त्रार्थ आरंभ किया। शास्त्रार्थ निरंतर 3 दिन और 3 रातों तक चला और देखते ही देखते सभी मुसलमान विद्वान इसमें परास्त होते चले गए। शास्त्रार्थ को झरोखे में बैठी शाहजहां की बेटी लवंगी भी देख रही थी। बादशाह ने उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया। बंदी पंडितों को मुक्त कर दिया गया। शाहजहां ने मिश्र से कहा, वे जो चाहे मांग सकते हैं। जगन्नाथ मिश्र ने कहा— राजन, धन और राजसुख की मुझे कोई कामना नहीं है। देना ही है तो वो स्त्री मुझे दे दें। उन्होंने संकोच के साथ अपनी बेटी लवंगी जगन्नाथ मिश्र को सौंप दी।
शास्त्रार्थ के लिए देश के अलग-अलग कोने से पंडित, मौलवी और विद्वान आए। शास्त्रार्थ कई दिन तक चला। पंडितों को हर बार हार का सामना करना पड़ा। सभी को सज़ा के तौर पर जेल भेजा गया। एक दिन की मोहलत देकर शाहजहां ने यह घोषणा कर दी कि अगर कोई हिन्दू विद्वान बचा है तो वह सामने आए अन्यथा मुसलमानों को विजयी घोषित कर दिया जाएगा। उस समय काशी में महापंडित महाज्ञानी जगन्नाथ मिश्र शाहजहां के महल पहुंचे और उनसे शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाने को कहा। मौलवियों और विद्वानों के बीच बैठकर जगन्न्नाथ मिश्र ने शास्त्रार्थ आरंभ किया। शास्त्रार्थ निरंतर 3 दिन और 3 रातों तक चला और देखते ही देखते सभी मुसलमान विद्वान इसमें परास्त होते चले गए। शास्त्रार्थ को झरोखे में बैठी शाहजहां की बेटी लवंगी भी देख रही थी। बादशाह ने उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया। बंदी पंडितों को मुक्त कर दिया गया। शाहजहां ने मिश्र से कहा, वे जो चाहे मांग सकते हैं। जगन्नाथ मिश्र ने कहा— राजन, धन और राजसुख की मुझे कोई कामना नहीं है। देना ही है तो वो स्त्री मुझे दे दें। उन्होंने संकोच के साथ अपनी बेटी लवंगी जगन्नाथ मिश्र को सौंप दी।
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