खतरा पैदा कर सकते हैं आतंकी!
विचार : पंजाब के तरनतारन इलाके में पाकिस्तानी ड्रोन द्वारा हथियार गिराये जाने तथा खालिस्तान चरमपंथियों की गिरफ्तारी व हथियार बरामदी की घटना एक भयावह खतरे के प्रति चेता रही है। गिरफ्तार चरमपंथियों की निशानदेही पर वापस उडऩे में विफल होने पर जलाये गये ड्रोन के अवशेष बरामद होना कुछ राहत देता है। मगर, तमाम सवाल भी खड़े करता है। आखिर भारतीय सीमा में ड्रोन की दखल की खबर सीमा सुरक्षा बल व शेष निगरानी तंत्र को क्यों नहीं मिली।
सवाल यह भी कि एक बार में दस किलो सामान उठाने वाले ड्रोन के जरिये इतनी बड़ी मात्रा में हथियार कैसे और कितनी बार में लाये गये। जाहिर है इसी ड्रोन ने ही कई फेरे लगाये होंगे या फिर ज्यादा संख्या में ड्रोन इस साजिश में शामिल थे। यदि इसी ड्रोन ने ही अत्याधुनिक हथियार, गोला-बारूद, सैटेलाइट फोन तथा नकली करेंसी भारत पहुंचायी तो निश्चय ही इसने ज्यादा चक्कर लगाये होंगे। ऐसे में यह बार-बार भारत आने के बावजूद कैसे हमारे सुरक्षा तंत्र की पकड़ में नहीं आ सका। सवाल यह भी उठ सकता है कि क्या पहले भी ड्रोन की घुसपैठ हुई यह एक बड़ी सुरक्षा चूक है। इसके बावजूद जबकि पहले से ही आशंका थी कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से बौखलाया पाक ऐसी हरकत पंजाब के इलाकों में कर सकता था। जम्मू-कश्मीर की सीमा में कड़ी चौकसी के चलते पंजाब की सीमा के अतिक्रमण की प्रबल आशंका थी। बहरहाल, हथियार गिराने के लिये ड्रोन के इस्तेमाल और इससे जुड़े एक आतंकी मॉड्यूल का पुलिस की गिरफ्त में आना एक राहतकारी घटनाक्रम है। अन्यथा जिस मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं, उससे बड़ी आतंकी घटना को अंजाम दिया जा सकता था। जाहिर तौर पर इन हथियारों का प्रयोग कश्मीर व पंजाब में किया जाना था। नि:संदेह इस बड़ी साजिश में पाक सेना और आईएसआई की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। एनआईए की जांच के बाद ही वास्तविक तथ्य सामने आ सकेंगे।
बहरहाल, पाकिस्तान द्वारा ड्रोन के जरिये आतंक फैलाने की यह घटना बड़े खतरे का संकेत है। यह हमारे सीमा प्रहरियों और सुरक्षा तंत्र के लिये भी बड़ी चुनौती है। इस प्रकरण ने वर्ष 1995 में हुए पुरुलिया कांड की याद दिला दी, जिसमें पुरुलिया में हथियार गिराने के लिये लातवियाई विमान का प्रयोग किया गया था। ऐसे में पाकिस्तान से लगती 550 किलोमीटर की सीमा पर नयी टेक्नोलॉजी के साथ सतर्क निगरानी की जरूरत होगी। जाहिर तौर पर पाकिस्तान खालिस्तान समर्थकों की मदद से पंजाब की फिजा में फिर ज़हर घोलना चाहता है। बड़ी शहादतों के बाद राज्य में स्थापित शांति उसे रास नहीं आ रही है। कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुंह की खाने के बाद उसने पंजाब को सॉफ्ट टारगेट समझा है। इससे पहले भी पाक पोषित आतंकवादी वर्ष 2015 में दीनानगर और वर्ष 2016 में पठानकोट में हमले कर चुके हैं। दरअसल, पाकिस्तान पंजाब को आतंकी समूहों के लिये एक लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल करना चाह रहा है। इसके मूल में पंजाब की पाक से लगती जटिल सीमा भी है, जो नदी-नालों और भौगोलिक जटिलताओं की वजह से पाक की घुसपैठ के लिये अवसर प्रदान करती है। हालांकि, सीमा पर मजबूत तारबाड़ भी स्थापित है। मगर, ड्रोन का इस्तेमाल सीमा की सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा कर रहा है। पहले इस रूट को नशे के कारोबार के लिये इस्तेमाल किया जाता रहा है। बहुत संभव है कि पंजाब व देश के अन्य भागों में बरामद नशे की बड़ी खेप के लिये भी ड्रोन का ही इस्तेमाल किया गया हो। रिपोर्टें बता रही हैं कि एक बार फिर बालाकोट में इस्लामिक आतंकवादियों का जमावड़ा शुरू हो गया है, जिसके खिलाफ सेनाध्यक्ष फिर से कार्रवाई की चेतावनी भी दे चुके हैं। आईएसआई द्वारा अफगान आतंकियों को ट्रेनिंग देने की खबरें भी चिंता बढ़ाने वाली हैं।
सवाल यह भी कि एक बार में दस किलो सामान उठाने वाले ड्रोन के जरिये इतनी बड़ी मात्रा में हथियार कैसे और कितनी बार में लाये गये। जाहिर है इसी ड्रोन ने ही कई फेरे लगाये होंगे या फिर ज्यादा संख्या में ड्रोन इस साजिश में शामिल थे। यदि इसी ड्रोन ने ही अत्याधुनिक हथियार, गोला-बारूद, सैटेलाइट फोन तथा नकली करेंसी भारत पहुंचायी तो निश्चय ही इसने ज्यादा चक्कर लगाये होंगे। ऐसे में यह बार-बार भारत आने के बावजूद कैसे हमारे सुरक्षा तंत्र की पकड़ में नहीं आ सका। सवाल यह भी उठ सकता है कि क्या पहले भी ड्रोन की घुसपैठ हुई यह एक बड़ी सुरक्षा चूक है। इसके बावजूद जबकि पहले से ही आशंका थी कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से बौखलाया पाक ऐसी हरकत पंजाब के इलाकों में कर सकता था। जम्मू-कश्मीर की सीमा में कड़ी चौकसी के चलते पंजाब की सीमा के अतिक्रमण की प्रबल आशंका थी। बहरहाल, हथियार गिराने के लिये ड्रोन के इस्तेमाल और इससे जुड़े एक आतंकी मॉड्यूल का पुलिस की गिरफ्त में आना एक राहतकारी घटनाक्रम है। अन्यथा जिस मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं, उससे बड़ी आतंकी घटना को अंजाम दिया जा सकता था। जाहिर तौर पर इन हथियारों का प्रयोग कश्मीर व पंजाब में किया जाना था। नि:संदेह इस बड़ी साजिश में पाक सेना और आईएसआई की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। एनआईए की जांच के बाद ही वास्तविक तथ्य सामने आ सकेंगे।
बहरहाल, पाकिस्तान द्वारा ड्रोन के जरिये आतंक फैलाने की यह घटना बड़े खतरे का संकेत है। यह हमारे सीमा प्रहरियों और सुरक्षा तंत्र के लिये भी बड़ी चुनौती है। इस प्रकरण ने वर्ष 1995 में हुए पुरुलिया कांड की याद दिला दी, जिसमें पुरुलिया में हथियार गिराने के लिये लातवियाई विमान का प्रयोग किया गया था। ऐसे में पाकिस्तान से लगती 550 किलोमीटर की सीमा पर नयी टेक्नोलॉजी के साथ सतर्क निगरानी की जरूरत होगी। जाहिर तौर पर पाकिस्तान खालिस्तान समर्थकों की मदद से पंजाब की फिजा में फिर ज़हर घोलना चाहता है। बड़ी शहादतों के बाद राज्य में स्थापित शांति उसे रास नहीं आ रही है। कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुंह की खाने के बाद उसने पंजाब को सॉफ्ट टारगेट समझा है। इससे पहले भी पाक पोषित आतंकवादी वर्ष 2015 में दीनानगर और वर्ष 2016 में पठानकोट में हमले कर चुके हैं। दरअसल, पाकिस्तान पंजाब को आतंकी समूहों के लिये एक लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल करना चाह रहा है। इसके मूल में पंजाब की पाक से लगती जटिल सीमा भी है, जो नदी-नालों और भौगोलिक जटिलताओं की वजह से पाक की घुसपैठ के लिये अवसर प्रदान करती है। हालांकि, सीमा पर मजबूत तारबाड़ भी स्थापित है। मगर, ड्रोन का इस्तेमाल सीमा की सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा कर रहा है। पहले इस रूट को नशे के कारोबार के लिये इस्तेमाल किया जाता रहा है। बहुत संभव है कि पंजाब व देश के अन्य भागों में बरामद नशे की बड़ी खेप के लिये भी ड्रोन का ही इस्तेमाल किया गया हो। रिपोर्टें बता रही हैं कि एक बार फिर बालाकोट में इस्लामिक आतंकवादियों का जमावड़ा शुरू हो गया है, जिसके खिलाफ सेनाध्यक्ष फिर से कार्रवाई की चेतावनी भी दे चुके हैं। आईएसआई द्वारा अफगान आतंकियों को ट्रेनिंग देने की खबरें भी चिंता बढ़ाने वाली हैं।
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