गुरु दिवस : पौराणिक काल के महान शिक्षक
विचार : आज पांच सितम्बर को गुरु दिवस उत्साह से मनाया जा रहा है। छात्र अपने अध्यापकों को जहां बधाई दे रहे हैं वहीं व्यवसायी वर्ग अपने छात्र जीवन में शिक्षकों की भूमिका को याद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर नेता, अभिनेता समेत अधिकतर लोग शिक्षक दिवस की बधाई दे रहे हैं, लेकिन बात करें पौराणिक काल की तो कई महान ऋषि शिक्षक हुए, जिन्होंने बड़ा सामाजिक परिवर्तन किया। प्राचीन काल में मानव जीवन में जब गुरु-शिष्य परम्परा की शुरुआत हुई और महान गुरुओं के ज्ञान और उनके बताए मार्ग पर चलकर विश्वप्रसिद्ध शिष्य बने, जिन्होंने भविष्य की दुनिया की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दी।
महर्षि वेदव्यास : गुरुओं की महान परंपरा में सबसे पहला नाम महर्षि वेदव्यास का आता है। इनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास को समर्पित है और इनके नाम से मनाई जाती है। इनका पूरा नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम महर्षि पराशर और माता का नाम सत्यवती था। और इनको भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था। महर्षि वेदव्यास को 18 पुराणों और महाभारत का रचनाकार माना जाता है।
महर्षि वाल्मीकि : महर्षि वाल्मीकि ने होश संभालने के साथ ही लूटपाट कर अपना जीवन व्यापन करना शुरू कर दिया था, लेकिन देवर्षि नारद के वचनों को सुनने के बाद वो डाकू रत्नाकर से साधक बने और अगले जन्म में वरुण देव के पुत्र रूप में उन्होंने जन्म लिया। वाल्मीकि ने कठोर तप कर महर्षि बने थे। उन्होंने सनातन संस्कृति के महान काव्य रामायण की रचना की थी। महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम को अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा दी थी।
गुरु द्रोणाचार्य : गुरु द्रोणाचार्य शस्त्र और शास्त्र के महान ज्ञाता थे। उन्होंने अपने परम मित्र को वचन ना निभाने पर परास्त किया था और उसका राज जीतकर उसको वापस कर दिया था। वे कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे। दुर्योधन, दु:शासन, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर आदि इनके प्रमुख शिष्यों में थे। गुरु द्रोणाचार्य ने राजधर्म का पालन करते हुए महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा था और अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के खिलाफ युद्ध करते हुए धोखे से वीरगति को प्राप्त हुए थे।
गुरु संदीपनि : गुरु संदीपनि की गिनती पौराणिक काल के महान गुरुओं में होती है। महर्षि संदीपनि ने उज्जैन को अपनी आराध्यस्थली बनाया था और वहां पर एक गुरुकुल की स्थापना की थी। इस गुरुकुल में उनसे शिक्षा लेने के लिए मथुरा से श्रीकृष्ण और बलराम आए थे। श्रीकृष्ण ने यहां पर 64 कलाओं की शिक्षा ली थी और गुरु सांदीपनि से मिले ज्ञान से श्रीकृष्ण ने विश्व को श्रीमद भागवत गीता के जरिए जगत कल्याण का संदेश दिया था।
परशुराम : भगवान परशुराम महान पौराणिक योद्धा भीष्म और कर्ण के गुरु थे। मान्यता है कि वो अमर हैं यानी अभी भी वो जीवित है। परशुरामजी को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। उनकी माता का नाम रेणुका और पिता का ऋषि जमदग्नि था। उन्होंने हैहय वंश के क्षत्रिय राजाओं का संहार किया था। कर्ण के झूठ बोलकर शिक्षा लेने पर कर्ण को उन्होंने श्राप भी दे दिया था।
महर्षि वेदव्यास : गुरुओं की महान परंपरा में सबसे पहला नाम महर्षि वेदव्यास का आता है। इनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास को समर्पित है और इनके नाम से मनाई जाती है। इनका पूरा नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम महर्षि पराशर और माता का नाम सत्यवती था। और इनको भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था। महर्षि वेदव्यास को 18 पुराणों और महाभारत का रचनाकार माना जाता है।
महर्षि वाल्मीकि : महर्षि वाल्मीकि ने होश संभालने के साथ ही लूटपाट कर अपना जीवन व्यापन करना शुरू कर दिया था, लेकिन देवर्षि नारद के वचनों को सुनने के बाद वो डाकू रत्नाकर से साधक बने और अगले जन्म में वरुण देव के पुत्र रूप में उन्होंने जन्म लिया। वाल्मीकि ने कठोर तप कर महर्षि बने थे। उन्होंने सनातन संस्कृति के महान काव्य रामायण की रचना की थी। महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम को अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा दी थी।
गुरु द्रोणाचार्य : गुरु द्रोणाचार्य शस्त्र और शास्त्र के महान ज्ञाता थे। उन्होंने अपने परम मित्र को वचन ना निभाने पर परास्त किया था और उसका राज जीतकर उसको वापस कर दिया था। वे कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे। दुर्योधन, दु:शासन, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर आदि इनके प्रमुख शिष्यों में थे। गुरु द्रोणाचार्य ने राजधर्म का पालन करते हुए महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा था और अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के खिलाफ युद्ध करते हुए धोखे से वीरगति को प्राप्त हुए थे।
गुरु संदीपनि : गुरु संदीपनि की गिनती पौराणिक काल के महान गुरुओं में होती है। महर्षि संदीपनि ने उज्जैन को अपनी आराध्यस्थली बनाया था और वहां पर एक गुरुकुल की स्थापना की थी। इस गुरुकुल में उनसे शिक्षा लेने के लिए मथुरा से श्रीकृष्ण और बलराम आए थे। श्रीकृष्ण ने यहां पर 64 कलाओं की शिक्षा ली थी और गुरु सांदीपनि से मिले ज्ञान से श्रीकृष्ण ने विश्व को श्रीमद भागवत गीता के जरिए जगत कल्याण का संदेश दिया था।
परशुराम : भगवान परशुराम महान पौराणिक योद्धा भीष्म और कर्ण के गुरु थे। मान्यता है कि वो अमर हैं यानी अभी भी वो जीवित है। परशुरामजी को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। उनकी माता का नाम रेणुका और पिता का ऋषि जमदग्नि था। उन्होंने हैहय वंश के क्षत्रिय राजाओं का संहार किया था। कर्ण के झूठ बोलकर शिक्षा लेने पर कर्ण को उन्होंने श्राप भी दे दिया था।
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