बुद्ध का आगमन
बोधकथा : नगर में बुद्ध का आगमन हुआ। हर्षोल्लास के वातावरण में नगर सम्राट के वजीर ने महाराज से अनुरोध किया—नगर में भगवान बुद्ध पधारे हैं। आप भी उनके स्वागत के लिए नगर द्वार पर चलिए। आप प्रजा के प्रतिनिधि हैं। सम्राट अपनी ठाठ-बाट की अकड़ में था। वजीर से बोला—ऐसे भिखमंगे, मांगकर खाने वाले के लिए मेरा जाना शोभा नहीं देता। उसे मेरे पास आना चाहिए। ऐसी अहंकारयुक्त वाणी सुनकर वजीर की आंखों में आंसू भर आए। रोते हुए सम्राट से कहने लगा—कृपया मेरा त्यागपत्र स्वीकार करें। अब मैं अपनी सेवा नहीं दे पाऊंगा। सम्राट अपने अनुभवी वजीर को खोना नहीं चाहता था। आहत होकर बोला—इतनी-सी बात पर त्यागपत्र। ऐसा क्या है उस फकीर में। वजीर कहने लगा—आप समझने का प्रयत्न करें, तो बताऊं।
राजन, जिसे आप भिखमंगा कह रहे हैं, उसके पास आपसे कहीं ज्यादा था। उसने उसे छोडऩे में एक क्षण नहीं लगाया। आप तो उतना सोच भी सको, यह अकल्पनीय है। सत्ता के नशे में आप अंधे हो चुके हो जो एक परम पद को प्राप्त दिव्यात्मा को नहीं देख पा रहे हो। मेरी नजऱ में भिखारी आप हो और बुद्ध सम्राटों के सम्राट हैं। इसीलिए कहता हूं मेरे साथ चलो।
राजन, जिसे आप भिखमंगा कह रहे हैं, उसके पास आपसे कहीं ज्यादा था। उसने उसे छोडऩे में एक क्षण नहीं लगाया। आप तो उतना सोच भी सको, यह अकल्पनीय है। सत्ता के नशे में आप अंधे हो चुके हो जो एक परम पद को प्राप्त दिव्यात्मा को नहीं देख पा रहे हो। मेरी नजऱ में भिखारी आप हो और बुद्ध सम्राटों के सम्राट हैं। इसीलिए कहता हूं मेरे साथ चलो।
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