नि:संदेह धरती को स्वर्गमय बना सकता है 'संवत्सरी' आचरण


बोधकथा : युद्ध का दौर था, अपनी राज्य-सीमा विस्तार के लिए एक राजा दूसरे राजा पर चढ़ाई करता। विजित राजा परास्त राजा को बंदी बना, कारागार में डाल देता। इसे शूरवीरता माना जाता था। प्राचीन भारत के सिन्धी-सौवीर राजा उद्रायण ने उज्ज्यीनी-राजा चंडप्रद्योत पर चढ़ाई कर, युद्ध जीत लिया। राजा चंडप्रद्योत बंदी बना लिया गया। जैन सांस्कृतिक संवत्सरी दिवस आया, जिसे मैत्री का महान पर्व माना जाता है। राजा उद्रायण बंदी राजा चंडप्रद्योत के पास कारागार में गये। निर्मल हृदय और स्नेहिल नेत्रों से चंडप्रद्योत को गले लगाते हुए बोले—चंडप्रद्योत! मुझे क्षमा कर दो। चंडप्रद्योत बोले—शूरमणि, बंदी आपको क्या क्षमा करेगा? उद्रायण बोले—चंडप्रद्योत, आज, न मैं जीता, न तू हारा। न मैं बड़ा और न तू छोटा। न तू बंदी, न मैं बंधक बनाने वाला। जाओ, अपने राज्य लौटकर वहां 'संवत्सरी' जीना सिखाओ कि धरती पर खून नहीं, क्षमा और प्यार बहना चाहिए। 'संवत्सरी' आचरण नि:संदेह धरती को स्वर्गमय बना सकती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

15 मई से सूर्य मेष से वृषभ राशि में जाएंगे, जानें किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा