कर्म का पुरस्कार

बोधकथा : एक बार राजा ने प्रजा की परीक्षा लेनी चाही। उसने सुबह ही मार्ग में बड़ा पत्थर रखवा दिया। अब मार्ग से जो कोई भी निकलता, उसे बड़ी असुविधा होती, किन्तु कोई भी उस पत्थर को हटाने का प्रयास नहीं कर रहा था। उसके राज्य के मंत्री व अन्य धनी लोग भी वहां से गुजरे, पर किसी ने भी पत्थर हटाने की आवश्यकता नहीं समझी अपितु सभी राजा को ही गालियां दे रहे थे कि राजा इसे क्यों नहीं हटवा रहा है।
 कुछ समय पश्चात वहां एक निर्धन किसान आया, जिसके सिर पर बड़ा-सा सब्जी का गट्ठर रखा हुआ था। जब वह पत्थर के समीप से निकलने लगा तो उसे भार के कारण बहुत असुविधा हुई। उसने अपने सिर से सब्जी की गठरी उतारी और पत्थर को पूरे बल से हटाने में जुट गया। कुछ ही समय में उसने वह पत्थर हटा दिया। जैसे ही वह वहां से चलने लगा, उसने देखा कि पत्थर वाले स्थान पर एक थैला पड़ा हुआ था। किसान ने थैला खोला तो उसमें से सोने के 1000 सिक्के निकले और एक पत्र भी था, जिसमें लिखा था—पत्थर हटाने वाले को राजा की ओर से पुरस्कार। दरअसल, जीवन में आने वाली असुविधा भी एक अच्छा अवसर लेकर आती है। जो लोग समझ नहीं पाते, वे अवसर खो देते हैं।

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