महाशिवरात्रि पर बना रहा विशेष योग
शिवपूजन से पूर्ण होंगी मनोकामनाएं
आस्था : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष यानि 2021 में महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि को मनाया जाएगा। इस साल महाशिवरात्रि पर विशेष शुभ योग का निर्माण हो रहा है।, जो इस शिवरात्रि की महिमा में वृद्धि करता है. इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन शिव योग बन रहा है।फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के नजदीक होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा मनवांछित फल देने वाली होगी। शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है—
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्य समप्रभ:॥
11 मार्च को शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से 12 बजकर 55 तक रहेगा। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा प्रहर पूजा का विधान भी है। महाशिवरात्रि पर भगवान की पूजा रात्रि के समय चार प्रहर में करने से विशेष फल प्राप्त होता है। भगवान शिव सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले माने गए हैं।महाशिवरात्रि पर प्रात:काल जलाभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता है। इस दिन भगवान शिव की प्रिय चीजों का अर्पण और भोग लगाना चाहिए। महाशिवरात्रि पर शिवजी के लिए व्रत रखकर खास पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह हुआ था। वहीं मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे। लिंग पुराण के अनुसार, लिंग अव्यक्त परमेश्वर का स्थूल रूप है। शैव मत में शिव निराकार रूप में अलिंगी कहे जाते हैं और लिंग स्थूल रूप में उनका व्यक्त रूप है। दरअसल, लिंग की संकल्पना सृष्टि के निर्माण से जुड़ी है। निराकार परमेश्वर जब सृष्टि का निर्माण करता है तो कुदरती रूप में लिंग के रूप में प्रकट होता है। लिंग का आधार योनि स्वरूप योगमाया या माया होती है। इसी स्थूल रूपी लिंग और योनि स्वरूप माया से संसार की सृष्टि होती है और प्रलय भी इसी लिंग शब्द की उत्पत्ति ”लयनात् इति लिंग:” से हुई है यानी जिस निराकार परमेश्वर के स्थूल रूप में संसार का लय हो जाता है।
एक अन्य मत के अनुसार भगवान शिव ने खुद को 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रकट किया था। माता पार्वती ने भी भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए बालू से लिंग बनाकर पूजा की थी। जब एकबार ब्रह्माजी व भगवान विष्णु ने खुद को सृष्टि का रचियता बताने की शर्त लगी थी, तब भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जिसके ओर-छोर का पता लगाने में ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही असफल रहे थे। ऐसे में उस लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने खुद को सृष्टि का आदिपुरुष बताया।
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