व्यर्थ है धन का अनावश्यक संग्रह

प्रेरक कथा : बहुत बड़े विद्वान और धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकों के लेखक थे राज भोज। राजा भोज के समय में कवियों को राज्य से बड़ा आश्रय मिला हुआ था। उन्होंने 1000 से 1055 ई. तक राज्य किया। उनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली। राजा भोज को बहुत बड़ा वीर, प्रतापी, और गुणग्राही भी बताया जाता है। उन्होंने अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के ग्रन्थ जुटाये थे। अच्छे कवि और दार्शनिक के साथ वे ज्योतिषी भी थे। उनकी राजसभा सदा बड़े-बड़े पण्डितों से सुशोभित रहती थी। राजा भोज एक बार जंगल के रास्ते से कहीं जा रहे थे। साथ में उनके राजकवि पंडित धनपाल भी थे। रास्ते में एक विशाल बरगद के पेड़ में मधुमक्खियों का एक बहुत बड़ा छत्ता लगा था, जो शहद के भार से गिरने ही वाला था। राजा भोज ने ध्यान से देखा तो पाया कि मधुमक्खियां हाय-तौबा के अंदाज में उस छत्ते से अपने पैर घिस रही हैं। उन्होंने राजकवि से इसका कारण पूछा। राजकवि बोले, महाराज! यह शहद के अनावश्यक संचय का नतीजा है। इसी तरह से धन संचय करने वाले बड़े-बड़े राजा महाराजाओं का आज कोई नाम लेने वाला नहीं है तो इन मधुमक्खियों की क्या बिसात, जिन्होंने आजीवन शहद का केवल संचय ही किया है। तब राजा भोज को ज्ञात हुआ कि अनावश्यक धन का संचय करना व्यर्थ है, जबकि धन यानि लक्ष्मी की प्रकृति चलायमान की है, लक्ष्मी को रोक नहीं पाया है, लक्ष्मी तो चलती रहेंगी। यानि कि सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि धन की तीन ही गतियां हैं- दान, भोग या नाश।

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