सत्कर्मो से बदल जाता है भाग्य
प्रेरक कथा : एक गांव में दुबला, पतला लड़का रहता था, वह रोज दूध पीता था, लेकिन मोटा नहीं होता था, गांव के लोग अक्सर उसका उदाहरण देकर कहते कि दूध पीने से कुछ नहीं होता। कभी—कभी इस बात को लेकर बच्चा भी चिंतित रहने लगा तब उसके माता—पिता ने बताया कि बेटा तुम अगर दूध नहीं पीते तो तुम्हारा जीवन बिल्कुल नहीं बचता, क्योंकि अनाज के सेवन में तुम्हें शुरू से परेशानी होती है, तुम सिर्फ और सिर्फ दूध के सहारे जीवित और स्वस्थ हो, तो क्या हुआ दुबले हो। इस बात से बच्चे का उत्साह बढ़ गया। इसी तर्ज पर आजकल अक्सर लोग कहते मिल जाते हैं कि पूजा, पाठ, ध्यान, स्नान, सत्कर्म से कुछ नहीं होता। जबकि ऐसा कहना एकदम अनुचित है। एक बार की बात है एक नदी तट पर एक शिवमंदिर था। एक पंडितजी और एक चोर प्रतिदिन मंदिर आते थे। जहां पंडितजी फल फूल, दूध चंदन आदि से प्रतिदिन शिव जी की पूजा करते। वहीं चोर रोज भगवान को खरी खोटी सुनाता और अपने भाग्य को कोसता। एक दिन पंडितजी और चोर एक साथ मंदिर से बाहर निकले। निकलते ही चोर स्वर्णमुद्राओं से भरी एक थैली मिल गयी। जब कि ठीक उसी समय पंडितजी के पैर में एक कील चुभ गई। चोर थैली पाकर अत्यंत प्रसन्न था। जबकि पंडितजी पीड़ा से परेशान। लेकिन पंडितजी को कील की पीड़ा से अधिक इस बात का कष्ट था कि मेरे पूजा पाठ के बदले भगवान ने मुझे कष्ट दिया। जबकि इस चोर के कुकर्मों के बदले इसे स्वर्णमुद्राओं के रूप में पुरस्कार मिला। इस बात को राहगीर साधू ने सुन लिया, तो साधु ने पंडित से कहा—हे ब्राह्मण ईश्वर के शुक्रगुजार बनो कि उसने आपको अभी तक सही सलामत रखा है, आप पर बहुत बड़ा कष्ट था इस कष्ट के कारण आपकी जान जा सकती थी, लेकिन सत्कर्मों के कारण आपको अल्प और क्षणिक दु:ख मिला, इसलिये सत्कर्मों को दोष न दें, तब जाकर पंडित जी को बात समझ में आयी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें