अच्छे कर्मों से आती है सुंदरता

प्रेरक कथा : एक दिन यह कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूँ। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही मेरे पंख सुंदर हैं और मैं काला-कलूटा भी हूँ। ऐसा सोचने से उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा कि मैं रोज गौर करता हूं, तुम कितने सुंदर हो, गोरे-चिट्टे हो, मैं तो काला हूँ, मेरा तो जीना ही बेकार है। बगुले ने कहा कि दोस्त मैं कहाँ सुंदर हूँ। मैं जब तोते को देखता हूँ, तो यही सोचता हूँ कि मेरे पास उसके जैसे हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है। तोते के पास ये दोनों ही चीजें हैं। अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी। वह तोते के पास गया। बोला कि तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश रहते होगे? तोता ने कहा कि खुश तो वाकई बहुत रहता था मैं, लेकिन जब से मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूँ, क्योंकि वह बहुत सुन्दर है। अब कौआ मोर को ढूंढने लगा, लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोरों को चिडिय़ाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं। कौआ चिडिय़ाघर गया और वहाँ एक पिंजरे में बंद मोर से उसकी सुंदरता के बारे में बात करने की कोशिश की, तो वह रोने लगा। रोते-रोते ही बोला, 'शुक्र मनाओ कौए भाई कि तुम सुंदर नहीं हो। तभी आजादी से घूम रहे हो, वरना मेरी तरह किसी चिडिय़ाघर के पिंजरे में बंद होते। इस कथा का तात्पर्य यह है कि दूसरों की सुन्दरता से अपनी इकेथिम कुरूपता की तुलना करके दुखी होते रहना बुद्धिमानी नहीं है। असली सुन्दरता हमारे अच्छे कर्मों से आती है।

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