उच्चतम न्यायालय के चर्चित फैसले
विचार : श्रीराम मंदिर का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने राम भक्तों के पक्ष में सुनाकर जिस तरह से सुर्खियां बटोरी, वह सर्वविदित है। अभी हाल ही में एक और फैसला शीर्ष अदालत का आया है, जो समाचार पत्रों ने पहले पृष्ठ पर छापा था। उच्चतम न्यायालय ने एक मार्च 2021 को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के 23 साल के आरोपी से पूछा कि क्या वह दुष्कर्म पीड़िता से शादी करने के लिए तैयार है। न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमर्ति वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता आनंद दिलीप लेंगडे से पूछा कि क्या आप उनसे शादी करेंगे। इस सवाल पर अधिवक्ता आनंद ने जवाब दिया कि उन्हें अपने मुवक्किल से निर्देश लेने की जरूरत है और इसके लिए शीर्ष अदालत से समय मांगा। न्यायमूर्ति ने कहा कि सरकारी कर्मचारी होने के नाते याचिकाकर्ता को अपने कुकृत्यों के नतीजों के बारे में सोचना चाहिए था। हालांकि न्यायमूर्ति ने जोर देकर कहा कि अदालत याचिकाकर्ता को लड़की से शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर रही है। मामले में दोबारा सुनवाई के दौरान आरोपी व याचिकाकर्ता के वकील ने न्याालय को बताया कि वह लड़की से शादी नहीं कर सकता है, क्योंकि वह शादीशुदा है। लेकिन बात यह भी तो है कि दुष्कर्म पीड़िता के वकील की इस मामले में राय क्या थी। इससे पहले एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह सुविधा कानून के तहत उपलब्ध है और इसे कानून के माध्यम से छीना जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था है कि मतदान का अधिकार कोई मौलिक अधिकार नहीं है और यह महज कानून द्वारा प्रदत्त है। पीठ ने कहा कि मताधिकार का प्रावधान जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत है जो कानून द्वारा लागू सीमाओं के अधीन है और यह कैदियों को जेल से वोट डालने की अनुमति नहीं देता। उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले और कानूनी स्थिति के मद्देनजर, उसे यह याचिका विचार योग्य नहीं मालूम होती और इसे खारिज किया जाता है। यह फैसला कानून के तीन छात्रों- प्रवीण कुमार चौधरी, अतुल कुमार दूबे और प्रेरणा सिंह की ओर से दायर एक याचिका पर आया था, जिसमें देश की सभी जेलों में बंद कैदियों को मतदान का अधिकार देने का अनुरोध किया गया था। इस याचिका में लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 (5) की वैधता को चुनौती दी गई थी जो कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं देती है। निर्वाचन आयोग ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि कानून के तहत कैदियों को मतदान का अधिकार नहीं है और सर्वोच्च न्यायालय ने इसका समर्थन किया था। इसके अलावा एक और मामला सुर्खियों में था—शीर्ष अदालत ने अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर पर सांकेतिक रूप से एक रुपए का जुर्माना लगाया था, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जुर्माना न भरने पर उन्हें तीन साल की सजा होगी, प्रशांत भूषण ने जुर्माने की राशि भर दी थी। इसके अलावा माननीय न्यायालयों उच्चतम व उच्च के कई फैसले चर्चित और शानदार रहे हैं।
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