आरक्षण की वजह से ग्राम पंचायत चुनाव लड़ने से वंचित

 

विचार : उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत 2021 चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी गयी है। उत्तर प्रदेश की कुल 58,194 ग्राम पंचायतें हैं। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया 3 अप्रैल से शुरू होगी। दूसरे चरण में 7 से 8 अप्रैल, तीसरे चरण में 13 से 15 अप्रैल तक होगा। नामांकन चौथे चरण में 17 अप्रैल से 18 अप्रैल तक होगा। पंचायत चुनाव को लेकर जो गहमागहमी रहती है वह और किसी चुनाव में नहीं। ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य आदि पदों के लिए अलग अलग प्रत्याशी खड़े होते हैं। देश में आरक्षण का ऐसा जहर पोषित किया जा रहा है, जिससे समाज का सिर्फ नुकसान ही हो रहा है। सवाल तो कई बार उठे, प्रदर्शन तो कई बार हुए लेकिन जिसने आरक्षण को लेकर सवाल उठाये, प्रदर्शन किया उसका भी सिर्फ और सिर्फ नुकसान किया गया, उसे कष्ट उठाना पड़ा। इसका मतलब यह नहीं कि आरक्षण के खिलाफ सवाल उठाने वाले मुश्किल में पड़ेंगे तो सवाल उठना बंद हो जायेगा, ऐसा बिल्कुल नहीं है। आरक्षण समाज को बांट रहा है इसलिए जब तक यह वैचारिक बंटवारा रहेगा, तब तक ऐसे सवाल उठते रहेंगे, विरोध होते रहेंगे। आरक्षण हटना ही चाहिए, क्योंकि उनका क्या कसूर जो समाज को अपना परिवार मानकर उनके सुख दुख में खड़े हुए आज उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया, ऐसे लोगों का क्या गलती है जो पूरे गांव को अपना परिवार मानते हैं उन्हें चुनाव लड़ने से दूर कर दिया गया। समाज में ऐसे लोग भी हैं जो नौकरी तो पाये हैं आरक्षण से लेकिन ऐसा कहने में वह संकोच करते हैं, समाज में सीना तानकर बताना चाहिए कि उन्हें आरक्षण से नौकरी मिली है। समाज में ऐसे लोग भी हैं जो सुखी, सम्पन्न और समृद्ध हैं, इसके बावजूद आरक्षण का पूरा पूरा लाभ लेते हैं, जिससे समाज में असंतुलन पैदा हो रहा है और जानबूझकर किया जा भी रहा है। समाज को किसी भी हाल में नहीं बंटने देना चाहिए। देश एक, समाज एक और विचार एक होना चाहिए, चाहे ​किसी भी देश का हो। और ऐसे समाज को इकट्ठा करने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शाखा अनवरत लगा रहा है, जहां समाज को एक रहने की सीख दी जाती है, देश से प्रेम करने की प्रेरणा मिलती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में आरक्षण नहीं आत्मीयता सिखाई जाती है, देशवासियों को शाखा जरूर जाना चाहिए, शाखा में अपने देश को जानने का पूरा मौका मिलता है और आरक्षण से दूरी बनाने का भी। कुल मिलाकर कहने का अर्थ है कि प्रत्येक पात्र नागरिक को आरक्षण स्वत: छोड़ देना चाहिए और अपनी ऊर्जा पर भरोसा रखना चाहिए। ऐसे लोग भी हैं जो चुनाव तो नहीं लड़ना चाहते, लेकिन आरक्षण की वजह से चुनाव लड़ना पड़ रहा है। वहीं ऐसे लोगों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं कि मतदान अपने अनुसार योग्य उम्मीदवार को मत दिया जाता लेकिन अब तो मजबूरी में वोट डालना ही पड़ेगा। ऐसे उम्मीदवार को वोट देना पड़ सकता है, जिसे मतदाता कतई पसंद नहीं करता। यानि कि आरक्षण से गम्भीर बुराइयां समाज में व्याप्त हैं इसलिये आरक्षणमुक्त देश की आवश्यकता समाज में महसूस की जा रही है। सभी समान हों, सभी का समुचित विकास हो, यही लोकतंत्र है। बाकी तो सब अपनी ढपली, अपना राग है।

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