कौन हैं संघ के स्वयंसेवक!

 

विचार : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्तमान समय का सबसे बड़ा और अनुशासित सांस्कृतिक संगठन है, जो देश की एकजुटता के लिये तेजी से अनवरत कार्य कर रहा है। अक्सर समाज के लोग जानना चाहते हैं कि संघ क्या है स्वयंसेवक किसे कहते हैं। संघ यानि कि शाखा, शाखा यानि कि कार्यक्रम, कार्यक्रम यानि कि खेल, योग, व्यायाम, सूर्य नमस्कार, गीत, सुभाषित, अमृतवचन समेत कई कार्यक्रम। शाखा एक घंटे की प्रात: और सायं के समय लगती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा प्रतिदिन व समय पर लगनी चाहिए। शाखा में भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्यक्रम होने चाहिए। स्वयंसेवकों में परस्पर मेलजोल, स्नेह, प्रेम और शुद्धता का वातावरण हो। आपस में विचार-विनिमय, चर्चा आदि कर अपने अंत:करण में ध्येय  साक्षात्कार नित्य अधिकाधिक सुस्पष्ट और बलवान करते रहने की स्वयंसेवकों में प्रेरणा व इच्छा रहे। सामूहिक रूप से नित्य अपनी प्रार्थना का उच्चारण गम्भीरता, श्रद्धा तथा उसका भाव समझकर करें। परम पवित्र प्रतीक के रूप में संघ का भगवा ध्वज है, उसे मिलकर नम्रतापूर्वक प्रणाम करें। ‘‘शाखा विकिर’ के अनंतर बैठकर आपस में बातचीत करें। कौन आया, कौन नहीं आया, इसकी पूछताछ करें। यदि शाखा नियमित एवं समय पर प्रारंभ करनी है तो शाखा के निर्धारित समय से पर्याप्त पूर्व अपने निवास से निकलें और शाखा के समय से कम से कम दो मिनट पूर्व संघस्थान पर उपस्थित रहें। कोर्इ हमें बुलाने आएगा तब जाएँगे, ऐसी प्रतीक्षा करना आवश्यक नहीं है। संघस्थान पर सभी स्वयंसेवकों को कार्यक्रम मन लगाकर, अनुशासनपूर्वक, नियमानुसार करना चाहिए। उसमें कष्ट हो तो रुष्ट न हों। संघ के कार्यक्रम कष्टकर होते हैं। कष्ट करने का अभ्यास कर बड़े-बड़े काम सहज करने की शक्ति बढ़ानी चाहिए। इसलिए उन्हें प्रयत्नपूर्वक व सफलतापूर्वक करें। ये कार्यक्रम अंत:करण में निर्भयता, आत्मविश्वास, पराक्रम के भाव उत्पन्न कर सबको एक अनुशासन में गूँथकर, हम सब एक महती शक्ति के अंग हैं, इस अनुभूति को निरंतर जागृत रखने के लिए हैं। इसलिए उन कार्यक्रमों का उत्तम अभ्यास करें। विकिर होने पर तुरत-फुरत घर भागने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। हम किसी के दबाव में शाखा नहीं आते। आना भी नहीं चाहिए। इसके अलावा पड़ोसियों का जीवनयापन कैसे चलता है? उनकी कठिनाइयाँ, दु:ख क्या हैं? उनकी सहायता में तत्पर रहना पड़ोसी का धर्म है। पड़ोस में कोर्इ गड़बड़ हुर्इ, तो अपना दरवाजा अंदर से बंदकर बैठना पड़ोस-धर्म नहीं है। पड़ोस में कोर्इ अस्वस्थ हुआ तो अपने भाग्य से हुआ होगा, वह जिए चाहे मरे, ऐसा सोचकर उसकी अनदेखी करना पड़ोसी का धर्म नहीं है। इसमें पड़ोस-धर्म तो दूर की बात रही, मनुष्यता भी नहीं है। अत: पड़ोस-धर्म का पालन करने हेतु घर-घर में जाना, सबसे मिलना, बोलना, सबसे अत्यंत स्नेह और आत्मीयता के संबंध रखने का प्रयास करना और इस बात का भी कि सबके हृदय में हमारे बारे में ऐसी धारणा बने कि यह व्यक्ति विश्वास करने योग्य है, इसमें अपने प्रति निष्कपट, नि:स्वार्थ प्रेम है। इसके अलावा कई और बातें सीखने को मिलती हैं, जो देश और स्वयं के लिये अहम है। जो लोग शाखा नहीं जाते वही लोग संघ की आलोचना करते हैं, जबकि संघ किसी की आलोचना नहीं करता। संघ का कहना है कि सभी शाखा आयें, सभी में एकरूपता रहे, चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल के ही क्यों न हों। कई स्वयंसेवक यह दावा करते हैं कि एक बार शाखा जाकर देखो, दोबारा फिर जाओगे। वरिष्ठ स्वयंसेवक बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ और सिर्फ शाखा लगाता है, इसके अलावा समाज में जो भी कार्य करता है वह शाखा के उपक्रम हैं।

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