ब्रज में इस बार दस दिनों तक चलेगा रंगोत्सव, जानें क्या है खास

मथुरा : इस बार ब्रज में रंगोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं जो 10 दिन तक चलेगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस वर्ष भी इस कार्यक्रम को पूरी भव्यता के साथ आयोजित कराने की तैयारियों में लगी है। उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद, राज्य पर्यटन विभाग और संस्कृति विभाग और जिला प्रशासन उत्सव के मद्देनजर जी-जान से जुटे हैं। ब्रज में होली महोत्सव के कार्यक्रम वसंत पंचमी से शुरू होकर होली जलने तक बदस्तूर पूरे 50 दिन तक जारी रहते हैं। योगी सरकार ने गत वर्ष से इन्हें पर्यटन विकास की दृष्टि से और भी ज्यादा प्रचारित-प्रसारित कर आकर्षक एवं पर्यटक हितैषी बनाने के प्रयास शुरू किए हैं। परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एवं मथुरा-वृन्दावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष नागेंद्र प्रताप ने कहा, ''ब्रज की प्राचीन विधाओं को प्रचारित-प्रसारित करने और उन्हें जीवंत रखने के लिए और होली के मौके पर देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को इसका करीब से अहसास कराने के लिए इस वर्ष भी 'रंगोत्सव' का आयोजन किया जा रहा है।'' उन्होंने कहा, ''यह आयोजन 13 मार्च से शुरू होकर 22 मार्च तक चलेगा। अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किए जाने वाले इन कार्यक्रमों का आयोजन स्थानीय प्रायोजकों के सहयोग से किया जा रहा है। इनमें विश्वस्तरीय कलाकार, ओलंपिक में भाग ले चुके महिला व पुरुष पहलवान, अखिल भारतीय स्तर के कवि, भाषाई कवि, लोक-संगीत से जुड़े कलाकार आदि भाग लेंगे।'' प्रताप ने बताया कि 13 मार्च को ब्रज भाषा कवि सम्मेलन का सबसे पहला कार्यक्रम, वृन्दावन शोध संस्थान के सभागार में अपराह्न 3 बजे से रात्रि 8 बजे तक होगा। इसी तरह अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दिन विभिन्न कार्यक्रम होंगे, जिनमें बरसाने की लठामार होली भी शामिल होगी। 

गौरतलब है कि बसंत पंचमी के अवसर पर रविवार को वृन्दावन के बांकेबिहारी मंदिर सहित सभी मंदिरों में ठाकुरजी को गुलाल अर्पित किए जाने के साथ ही ब्रज में पचास दिन के चलने वाले होली महोत्सव की शुरुआत हो गई। सदियों से चली आ रही परंपरानुसार ब्रजमण्डल के सभी मंदिरों में रविवार को वासंती परिधान में सजे-संवरे ठाकुर को अर्पण कर भक्तों के ऊपर प्रसाद के रूप में अबीर-गुलाल फेंका गया। इसी के साथ अब होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होली जलाए जाने तक) प्रतिदिन होली खेली जाएगी। बांकेबिहारी मंदिर में टेसू के फूलों से बने रंग से होली खेली जाती है। ये रंग शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचाता। बल्कि, अनेक शास्त्रोक्त औषधियों के मिश्रण से बना यह रंग त्वचा को कांति पहुंचाता है। इसीलिए, अन्य मंदिरों में भी होली खेलने के लिए टेसू के रंगों का प्रयोग किया जाता है। गौरतलब है कि आज ब्रज की होली देश भर में आकर्षण का केंद्र है। यहां की बरसाने की लठमार होली काफी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों और कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। हरियाणा की प्रथा है कि धुलंडी में भाभी अपने देवर को सताती है। ब्रज ही ये होली न केवल खेली गई बल्कि लिखी भी गई है। प्राचीन पांडुलिपियों में दर्ज होली के पद और रसिया इसके महत्व को आज भी दर्शा रहे हैं। मुगल काल में होली राजवाड़ों में खेली गई, तो ब्रज में होली की लिखित परंपरा भी इस दौर में शुरू हुई।18 वीं सदी में राजस्थान की कृष्णगढ़ चित्र शैली के एक चित्र में कृष्णगढ़ नरेश महाराज सांवत सिंह जो कि ब्रज में रहने के दौरान नागरीदास के नाम से जाने जाते थे। नागरीदास प्रसिद्ध भक्त कवि थे और उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय वृंदावन में बिताया और प्रसिद्ध होली पदों की रचना की और उनके दरबारी चित्रकारों ने इन्हीं पदों के भावों पर आधारित होली विषयक सैकड़ों चित्र तैयार किये। 
अभिषेक त्रिपाठी

दूरभाष-8765587382

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