बेरोजगार हो गये अन्ना हजारे, मोदी सरकार ने बड़ी ही आसानी से कर दी लोकपाल की नियुक्ति


विचार : अन्ना हजारे को तो समाजसेवी कहा जाता है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं नौटंकीबाज मानता हूं। यूपीए की सरकार थी तब अन्ना हजारे लोकपाल नियुक्ति के लिए काफी आंदोलन किये थे, जो काफी हिट भी हो गये थे। मोदी सरकार में भी उन्होंने लोकपाल नियुक्ति के​ लिए नाटक करना चाहा लेकिन उनकी मंशा धरी की धरी रह गयी, क्योंकि अन्ना के समर्थन में कोई पहुंचा ही नहीं और लोकपाल नियुक्ति के लिए आंदोलन असफल रहा। चूंकि जनता जान चुकी है कि लोकपाल आंदोलन से एक राजनीति का कुनेता निकला, जिसका नाम अरविंद केजरीवाल है, देश की काफी क्षति कर रहा है। उधर, मोदी सरकार सभी का मुंह बंद करना चाह रही है, इसी के तहत अन्ना हजारे जैसे लोगों को चुप कराने के लिए जरूरी था कि लोकपाल ​की नियुक्ति की जाये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही आसानी से लोकपाल की नियुक्ति कर दी। भले ही देश ने पारदर्शी लोकतंत्र के रखवाले लोकपाल के लिये पांच दशक इंतजार किया हो, मगर देर आये दुरुस्त आये की तर्ज पर देश को एक लोकपाल मिला है जो निर्भीक व संवेदनशील फैसलों के लिये जाना जाता है। नि:संदेह उनके रक्त में न्यायिक संस्कार हैं। पांच पीढिय़ों का लगातार न्यायिक सेवा में सक्रिय रहना नि:संदेह व्यक्ति को न्याय की गरिमा और दायित्वों का अहसास करा जाता है। आजादी से पहले और आजादी के बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी हासिल होने वाले अनुभवों ने ही पी. सी. घोष को परिपक्व न्यायिक दृष्टि दी है। वर्ष 1952 में जन्मे पिनाकी चंद्र घोष आमतौर पर पी. सी. घोष के नाम से जाने जाते हैं। उनके पिता जस्टिस शंभू चंद्र घोष कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। जस्टिस पी. सी. घोष का परिवार विधि के क्षेत्र में पांच पीढिय़ों से कार्यरत है। दरअसल, उनके परिवार का नाता देवन बनारसी घोष से है। वर्ष 1857 में भारत की पहली सदर दीवानी अदालत में इन्हीं के परिवार के हर चंद्र पहले भारतीय मुख्य जज बने थे। जस्टिस घोष ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके उपरांत उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की। वर्ष 1976 में एक वकील के तौर पर पश्चिम बंगाल बार काउंसिल से जुड़ गये। उन्हें कंपनी अफेयर्स, सांविधानिक मामलों व सिविल लॉ का विशेषज्ञ माना जाता है। 1997 में जस्टिस घोष को कलकत्ता हाईकोर्ट का जज बनाया गया। उसके उपरांत वे वर्ष 2012 में आंध्र हाईकोर्ट में जज बने। कालांतर उन्हें यहां का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। वर्ष 2013 में वे सुप्रीमकोर्ट में जज बने जहां से वर्ष 2017 में सेवानिवृत्त हुए। जस्टिस पी. सी. घोष को सख्त फैसले लेने के लिये जाना जाता है। वे मानवीय मामलों में बेहद संवेदनशील और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति गहरे समर्पित रहते हैं। हाल ही में वे तब चर्चा में आये जब उन्होंने बाबरी विध्वंस मामले में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उनके खिलाफ केस चलाने का आदेश दिया था। जस्टिस घोष कई मशहूर फैसलों के लिये याद किये जाते हैं। उनकी ही बेंच ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता व उनकी साथी शशिकला के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। जस्टिस घोष और जस्टिस अमिताभ राय की बेंच ने दोनों को बड़ी संपत्ति खरीदने के लिये जनता का पैसा इस्तेमाल करने का दोषी ठहराया था। जस्टिस घोष वाली खंडपीठ ने बाबरी विध्वंस मामले में वर्ष 2017 में बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी और कल्याण सिंह के खिलाफ ट्रायल कोर्ट को आरोप दर्ज करने के लिये कहा था। उनके फैसलों में घरेलू हिंसा से जुड़ा एक मामला खासा चर्चित हुआ था। जस्टिस चंद्रमौली व जस्टिस घोष की बेंच ने फैसला दिया था कि घरेलू हिंसा के मामले में तुरंत गिरफ्तारी न हो, ऐसा करना अदालत की अवमानना माना जायेगा। उच्चतम न्यायालय का जज रहते हुए जस्टिस राधाकृष्णन की बेंच में उन्होंने फैसला सुनाया था कि जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की प्रथाएं पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उल्लंघन करती हैं। जो बताता है कि वे सिर्फ मानवीय सरोकारों के ही प्रति नहीं बल्कि जीव-जंतुओं के प्रति भी उतने ही संवेदनशील हैं। इस फैसले में उनकी संवेदनशील दृष्टि को गहरे तक महसूस किया जा सकता है। जस्टिस घोष सामाजिक कार्यों से भी जुड़े रहे हैं। वह रामकृष्ण मिशन के सेवा प्रकल्पों में सक्रिय रहे हैं। इस समय तक वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य थे। अब जबकि पी. सी. घोष देश के पहले लोकपाल चुन लिये गये हैं और उनकी टीम का ऐलान हो गया है तो उम्मीद जगी है कि स्वच्छ व पारदर्शी लोकतंत्र के लिये उनके फैसले भारतीय लोकंतत्र की अस्मिता की रक्षा में मील का पत्थर साबित होंगे। यह बात अलग है कि वर्ष 2013 में लोकपाल कानून बनने के बाद लोकपाल संस्था तब अस्तित्व में आई जब सुप्रीमकोर्ट ने दबाव बनाया। यह संस्था तब अस्तित्व में आई जब राजग सरकार का कार्यकाल समाप्त होने को था और आम चुनावों के लिये देश में आचार संहिता लागू हो गई। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि पांच दशक की जद्दोजहद के बाद अस्तित्व में आयी लोकपाल संस्था निर्भय होकर भ्रष्टाचारी नेताओं व नौकरशाहों पर नकेल डालेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सख्त फैसले लेने के लिये चर्चित पी. सी. घोष लोकपाल संस्था को सार्थकता प्रदान करने में सक्षम होंगे।
 
 


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