दिलेर प्रधानमंत्री मोदी को हटाने के लिए तरह—तरह के हथकंडे अपना रहा विपक्ष

विचार : भारत और पाकिस्तान में पुलवामा मामले को लेकर तनाव है। इसी बीच भारत ने विश्व सुरक्षा परिषद में गुहार लगायी कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया जाये, लेकिन चीन ने यूएनओ में अड़ंगा लगाने को एक बात कही कि भारत में कई लोग मसूद अजहर को आतंकी नहीं मानते। यह बयान वास्तव में चिंतनीय है। भारत के इतने टुकड़े होने के बाद भी अभी कई भारतीय अपने देश् को खण्ड—खण्ड देखना चाह रहे हैं। सियासत के पर्दे जब हवा के रुख से इतर टहनियां तलाशते हैं तो फतह की जगह फना होने का मंजर कोई रोक नहीं सकता। फिलहाल चुनावी माहौल में पर्दों की फडफ़ड़ाहट कुछ ज्यादा नजर आती है। तलाश मौके की रहती है बगैर यह सोचे, यह मौका सियासत की चौखट का खुला दरवाजा है या आने वाले बंद ड्योढ़ी का खतरनाक प्रवेश द्वार। मसला कुछ यूं कि पुलवामा के बाद जहर बुझे बयानों की सूनामी कुछ यूं परवान चढ़ी कि सामने वाले को लगा कि इसी रेल में बह जाएगा मोदी का करिश्मा और रह जाएंगी शेष सिर्फ उनकी हसरतें। समय का खेल देखिये देखते-देखते बदलाव के अंधड़ में मोदी एंड पार्टी ने उनका जुमला चुराकर चौकीदार शब्द को चुनावी मोहरा बना दिया और जिस सुरक्षा परिषद में चीन ने जैश-ए-आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक दहशतगर्द घोषित करने का विरोध किया था, आज वही चीन खुलेआम अपने बदले रुख के साथ कहता हुआ सामने है कि उसे भारत की चिंता है और वह इस मसले को सुलझा लेंगे। यह संकेत है भारत के बदलावों की सूनामी का, यह संकेत है विश्व व्यापी भारतीय कूटनीति की उस विधा का जो कभी चाणक्य के रूप में सर्वमान्य थी। आज बदले हुए माहौल में समां कुछ बदला-बदला सा नजर आता है। पुलवामा के बाद पाकिस्तान की बालाकोट में हुई एयरस्ट्राइक के बाद विपक्ष के दमदार चेहरों ने माहौल की नजाकत को समझते हुए जुबान पर पाबंदी पर ताला लगा दिया था, लेकिन चुनावी बढ़त की सोच के चलते चंद दिनों बाद आग उगलते बयानों का सिलसिला राष्ट्रीय अस्मिता के सवाल को छिन्न-भिन्न करता नजर आया, फिलहाल चीन के बदले हुए रुख से यह साबित हो गया कि यकीनन आतंक के खिलाफ उसी तरह का माहौल बनाया, जैसा कभी मोदी ने योग के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ के तकरीबन 180 देशों की सहमति के बाद योग को स्वीकारोक्ति दिलायी थी। आतंकी अजहर पर भारत का रुख स्पष्ट है और विश्व की बड़ी ताकतें, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने स्पष्ट कहा है कि चीन तुरंत विचार करे वरना निपटने के रास्ते और भी हैं। यह धमकी नहीं, आतंक के दानव को वैश्विक स्तर पर कुचलने का संकेत था, जो भारत के कूटनीतिक, रणनीतिक और आत्मरक्षार्थ सोच का नतीजा कहा जा सकता है। समझना होगा कि जिस वक्त पुलवामा में भारत के तकरीबन 42 जवानों का कत्ल-ए-आम किया गया था, उसके ठीक बाद भारत की थल सेना, वायु सेना के साथ नौसेना, विमान वाहनपोत और परमाणु पनडुब्बियों ने मोर्चा संभाल लिया था, इंतजार आदेश का था। इतना ही नहीं भारत ने चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान आतंक पर लगाम लगाये, पुलवामा के हत्यारों को गिरफ्त में लें वरना परमाणु मिसाइलों का रुख उन निशानों पर कर दिया है, जहां से दहशतगर्दों की सोच का जन्म होता है। यह भारत की रणनीति का एक छोटा सा नमूना है और हालत यह कि जब नौसेना का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य अपने लड़ाकू बेड़े, परमाणु पनडुब्बियों, साठ युद्घपोतों, तटरक्षक बल के 12 जलपोतों और विमानों के साथ जब उत्तरी अरब सागर में मोर्चा ले चुका था, उस वक्त पाकिस्तानी नौसेना की गतिविधियों को इस हद तक सीमित कर दिया कि वह मकराना के तटीय क्षेत्र से एक कदम आने बढऩे की हैसियत में नहीं थी। समझना होगा भारत की ताकत को उसकी रणनीति कौशल को, जिसके चलते भारत के युद्घक विमान उसकी मांद में घुसकर दहशतगर्दों के सफाये के बाद सुरक्षित वापस लौट आये थे। यह गौरव गाथा है, जिसे हिंदुसतान का विपक्षा कलंकित गाथा में बदलना चाहता है लेकिन इस बीच चीन के बदले तेवरों से यह साफ हो गया कि विरोधी देशों के तेवर बदल सकते हैं, लेकिन शायद हमारे विपक्ष के नहीं। जहां कांग्रेस में सत्ता के लिए सोनिया, राहुल, प्रियंका सहित कई खानदान के लोग एड़ी, चोटी का जोर लगा रहे हैं वहीं सपा में भी पिता, पुत्र, चाचा, बहू समेत कई लोग मोदी को हटाने के लिए कमर कस चुके हैं, लेकिन भारतीय जनता कुछ और चाहती है। यह किसी से छिपा नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के इतिहास में कई बेहतरीन कार्य किये हैं, जिस पर पूरे देशवासी गर्व कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चौकीदार वाला मामला खूब ट्रेंड कर रहा है।

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