
विचार : खानदानी राजनीति के तहत प्रियंका गांधी वाड्रा कांगे्रस की सरकार बनवाने के इरादे से राजनीति में उतर आयी हैं, जो कि पहले कहा करती थीं कि मैं राजनीति में कभी नहीं आऊंगी, इसक मतलब आप झूठ बोल रही थी, इसका मतलब आप झूठी हो, और आज भी आप जब जनता के बीच जा रही हैं तो जनता से आखिर झूठ ही तो बोल रही हैं और प्यारी, भोली जनता आपके झूठ को पहचान नहीं पा रही है कि आप एक लुटेरे, चोर की बीवी, घोटालेबाज पप्पू की बहन और बीयर बार में डांस करने वाली की बेटी हो। आप किस मुंह से जनता के बीच जाती हो, क्या उपलब्धि है तुम्हारी! गलती तुम्हारी नहीं प्रियंका जी, हम जनता को गुलामी में रहने की आदत है। वहीं मंगलवार को कांग्रेस की पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा का कार्यक्रम रद्द हो गया। रामपुर घाट पर लोगों और बच्चों से मुलाकात करना था। लेकिन प्रियंका गांधी कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी से कल नाराज थीं। प्रियंका गांधी की नाराजगी की वजह भदोही में कार्यक्रम का ठीक तरह से संचालन न होना बताया जा रहा है। मंगलवार सुबह 8 बजे सीतामढ़ी मंदिर में माता सीता के दर्शन करने की योजना थी।इसके बाद सुबह 9 से 9:30 बजे तक जीटी रोड स्थित पार्टी कार्यालय और जिला अध्यक्ष के घर के पास प्रियंका गांधी का स्वागत होना था। जिसके बाद रोड शो करते हुए प्रियंका गांधी को मिर्जापुर विंध्यवासिनी धाम के लिए रवाना होना था। कांगे्सियों का एक ही उद्देश्य है सत्ता पर कब्जा करना। कांगे्रस का बहिष्कार न करना भारतीयों के लिए शर्मनाक है क्योंकि यह वही कांगे्रसी हैं, जिन्होंने भारत के टुकड़े—टुकड़े किये, यह वही कांगे्रसी हैं, जिन्होंने वंदे मातरम कहने पर शर्म आती है। यह वही कांगे्रसी हैं, जिन्होंने देशभ्रक्त सुभाष चंद्र बोस को देश में युद्धअपराधी घोषित करवाया, यह वही कांगे्रसी हैं जिन्होंने अनगिनत घोटाले पर घोटाले किये, यह वहीं कांगे्रसी हैं जो आतंकियों को आदर और अपने पूर्वजों को गाली देते हैं, यह वहीं कांग्रेसी हैं जो आतंकी मसूद को जी व बेहतरीन प्रधानमंत्री जी को चोर कह रहे हैं। होना तो यह चाहिए कि इन्हेें अपने क्षेत्र में घुसने नहीं देना चाहिए, लेकिन भारत माता के कपूत तो हर जगह हैं, जो देशद्रोहियों को खूब खाद, पानी दे रहे हैं, लेकिन उनके मंसूबे पूरे नहीं हो पायेंगे। वहीं कांगे्रस को छुटभइये नेता खूब आंखें दिखा रहे हैं, इसी का नतीजा है कि कांगे्रस, जो कल तक बाबू सिंह कुशवाहा को भ्रष्ट राजनेता मानती थी, वह कांगे्रस, जिसके सर्वेसर्वा राहुल गांधी ने 2011 में जिसके खिलाफ मोर्चा खोला था और महासचिव के रूप में राहुल गांधी ने एनआरएचएम घोटाले के आरोपित बाबू सिंह कुशवाहा के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए आरटीआई का सहारा लिया था, आज दागों का यह मसीहा कांगे्रस को अच्छा लगने लगा है और शायद इसी के चलते उन पर कुछ सीटें न्यौछावर कर दी गयी हैं। यह बानगी है सियासी तिलिस्म की और इसी के साथ सच्चाई यह भी है कि जो पार्टी 2014 में मात्र दो खानदानी सीटें अमेठी व रायबरेली बचा पायी थी, आज सात सीटें मायावती-अखिलेश गठबंधन को पेश कर अपनी पीठ थपथपा रही है। समझ से परे है, सीटों का गणित, हताश कांगे्रस का चरित्र और उनके प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर की फिल्मी सोच का त्रिया, चरित्र। इसी संदर्भ में मायावती का पलटवार भी चौंकाने वाला है। उन्होंने सात सीटें छोडऩे के संदर्भ में कांगे्रस को सीधा जवाब देते हुए स्पष्टï किया कि भाजपा को हराने के लिए हम काफी हैं, आपके सहयोग की जरूरत नहीं और महागठबंधन की बात कर झूठ व फरेब का पहाड़ खड़ा करना बंद करे। मौजूदा चुनाव युद्घ नहीं, बल्कि एक व्यक्ति को निशाना बनाकर संगठित समूह की वह व्यूहरचना है, जिसमें सेनापति को यह नहीं पता कि उसके सिपाहियों का जमावड़ा कैसे और कब हुआ, सिपाहियों को नहीं पता कि उनका सेनापति कौन है? लेकिन हुंकार भर दी गयी है, बयानों के जरिये बिगुल बज रहा है, रणभेरी की तैयारी है लेकिन अचूक निशाना भेदने की काबिलियित किसी में नजर नहीं आती। इसी तरह की काबिलियत का सच है कि उत्तर प्रदेश में पिटी कांगे्रस की नवोदित नेत्री प्रियंका गांधी, जिन्होंने प्रयागराज के सिरसा से गंगा यात्रा शुरू की और यह बताने की कोशिश की कि उन्हें घर से बाहर क्यों आना पड़ा? कल तक पति वाड्रा के गुनाहों की भागीदार बनीं प्रियंका आज राजनीति में शुचिता का दम्भ भरते हुए सामने हैं, उन्हें चिंता है कि जनमानस दु:खी है, संवैधानिक संस्थाएं नष्टï हो रही हैं और ऐसी आपात स्थिति में देश को बचाने के लिए घर की चहारदीवारी से बाहर आयी हैं। उनका आरोप था कि देश को पांच, सात लोग चला रहे हैं, लेकिन प्रियंका यह शायद भूल गयीं कि विगत दस साल का इतिहास बताता है कि प्रधानमंत्री भले ही मनमोहन सिंह हों, लेकिन तब सरकार गांधी परिवार का एक चेहरा यानि सोनिया ही चला रही थीं। प्रियंका तब क्यों खामोश थीं, राहुल के क्रांतिवीर विचार तब क्यों गुम हो गये थे, जब मनमोहन के शासनकाल में संस्थाएं नष्ट हो गयी थीं, भ्रष्टाचार सरकार की कार्यशैली का अंग बन चुका था और महंगाई का ग्राफ समझना होगा तीस प्रतिशत को छूने लगा था। जनमानस को याद है कि गांधी परिवार राजसी मनोवृत्ति का सच है, इसीलिये याददाश्त का कमजोर होना, उनकी खानदारी परम्परा का एक अहम हिस्सा कहा जा सकता है। सत्ता भोगी कांगे्रसी देशहित में नहीं सोचते बल्कि स्वयं की सोचते हैं, स्वार्थी हैं कांगे्रसी जो देश लूट रहे हैं, और हम लुटवा रहे हैं।
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