महाशिवरात्रि के दिन समाप्त हुआ प्रयागराज कुम्भ, 2021 में लगेगा अगला कुम्भ हरद्विार में


लखनऊ : पुराणों में वर्णन है कि जिस प्रकार जगत की उत्पत्ति ब्रह्याण्ड से होती है, उसी प्रकार प्रयाग से अन्य तीर्थोे की उत्पत्ति है। प्रयाग में इसलिए पहुंचते हैं तीर्थ यात्री प्रयाग विश्व का प्राचीनतम् और सर्वोतम तीर्थस्थल है। श्वेत-नदियों का संगम प्रयाग सदियों से देवताओं, ऋषियों, मुनियों, साधु-सन्तों और गृहस्थों की तपस्थली रहा है। गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर प्रति वर्ष माघ मेले का आयोजन होता है। यह मेला सूर्य के मकर राशि में प्रवृष्टि होने पर लगता है। यहां पर भारत के विभिन्न भागों से तीर्थ-यात्री कल्पवास और स्नान के लिए एकत्रित होते हैं। कामद और मोक्षद दो प्रकार के तीर्थ होते हैं। जो तीर्थ कामनाओं की पूर्ति करने वाले होते हैं, उन्हें कामद तीर्थ कहते हैं, जो तीर्थ मोक्ष दिलाते हैं, उन्हें मोक्षद तीर्थ कहते हैं। कामनाओं से मुक्ति द्वारा मोक्ष ही प्राप्त होता है। कामनाओं की पूर्ति चाहने वाले को मोक्ष नहीं मिलता क्योंकि उनकी इच्छा भोग की ओर रहती है। प्रयाग तीर्थ में ये है खास प्रयाग ही एक ऐसा तीर्थ है, जो कामद भी और मोक्षद भी है। विश्व के सारे तीर्थ इसके अधीन हैं। इसीलिए प्रयाग तीर्थराज है। स्वर्ग, मत्र्य और पाताल लोकों में कुल साढ़े तीस करोड़ तीर्थ है। इन सभी तीर्थो का राजा प्रयाग है जो मुक्ति और भुक्ति दोनों देता है। प्रयाग तीर्थ की सेवा देवता, मुनि, दैत्य आदि सभी करते हैं और प्रत्येक माघ मास में जब सूर्य मकरस्थ होते हैं तो प्रयाग में विश्व के समस्त तीर्थ और देव, दनुज, किन्नर, नाग, गन्धर्व एकत्रित होकर आदर पूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते है- देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहि सकल त्रिवेनी।। कहां होता है पापकर्मों का नाश अन्य स्थलों पर हुए पापकर्मों का नाश पुण्य क्षेत्रों का दर्शन करने से होता है। पुण्य क्षेत्र में हुये पापों का शमन कुम्भकोण तीर्थ में होता है। कुम्भकोण में हुय पापों का नाश वाराणसी में होता है। वाराणसी में हुये पापों का नाश प्रयाग में होता है। प्रयाग में हुये पापों का शमन यमुना में, यमुना में हुए पापों का शमन सरस्वती में, सरस्वती में हुए पापों का नाश गंगा में, गंगा में हुए पापों का शमन त्रिवेणी स्नान से होता है। त्रिवेणी में हुए पापों का नाश प्रयाग में मृत्यु होने से होता है। 


वहीँ दूसरी तरफ हरिद्वार में अगले कुंभ मेले की तैयारियां शुरू होने लगी हैं। हरिद्वार में कुंभ का आयोजन 2022 में तय था, लेकिन ग्रहों के संयोग ने अब इसका आयोजन 2021 में होना तय हुआ है। विद्वत परिषद ने भी हाल में आयोजित इस तारीख पर मुहर लगा दी है। हरिद्वार में कुंभ का आयोजन तभी होता है जब मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति का आगमन होता है, लेकिन इस बार 2022 में कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश नहीं हो रहा है। इसी कारण इस बार कुंभ का आयोजन 2021 में ही आयोजित करने की उज्जयिनि विद्वत् परिषद ने निर्णय लिया है लेकिन इसके लिए अभी शंकराचार्यों, आचार्यों तथा हरिद्वार, काशी की विद्वत परिषद की मुहर लगनी है। उम्मीद है मुहर लग जाएगी। 2016 में उज्जैन में महाकुंभ हुआ था, उस लिहाज से अगला कुंभ वैसे तो 2022 में होना चाहिए था लेकिन ग्रहों के योग न मिलने के कारण अब ये छह साल बाद न होकर पांच साल बाद 2021 में होगा।
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