नेतृत्व नहीं, देश पर शासन और कब्जा करना चाह रहे हैं देशद्रोही

विचार : एक बार फिर चर्चा में है आतंकी सरगना मसूद अजहर। मामला है मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का। एक तरफ चीन आतंकियों का साथ दे रहा है वहीं दूसरी तरफ कांगे्रस पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्टपति शी जिनपिंग से डर गये। शायद राहुल गांधी को डोकलाम विवाद याद नहीं, जिसमें चीन को कदम पीछे खींचना पड़ा था। और मान भी लेते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी डर गये, तो आपने हिम्मत भी तो नहीं बंधाई। हालांकि भाजपा सरकार के कद्दावर मंत्री अरुण जेटली ने इस पर पलटवार किया और दो अगस्त 1955 को नेहरू द्वारा मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र का हवाला देते हुए कहा कि कश्मीर और चीन, दोनों पर मूल गलती एक ही व्यक्ति द्वारा की गई और वह थे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिनको भारतीय जनता हमेशा शक भरी नजरों से देखती रही। और देखे भी क्यों न, नेहरू साहब की आदत भी तो कुछ बिगड़ी हुई भी तो थी। वहीं वित्त मंत्री ने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा दो अगस्त 1955 को मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र से स्पष्ट होता है कि अनौपचारिक रूप से अमेरिका ने सुझाया था कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में लिया जाए लेकिन उसे सुरक्षा परिषद में नहीं लिया जाए तथा भारत को सुरक्षा परिषद में लिया जाए। जेटली ने अपने ट्वीट में नेहरू के पत्र के हवाले से कहा कि इसे स्वीकार नहीं कर सकते और यह चीन जैसे महान देश के साथ उचित नहीं होगा कि वह सुरक्षा परिषद में नहीं हो। राहुल गांधी पर चुटकी लेते हुए जेटली ने पूछा कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष यह बतायेंगे कि मूल दोषी कौन था? वहीं मसूद अजहर के मामले में चीन का रवैया सर्वविदित था लेकिन राहुल गांधी यह क्यों भूल गये कि विश्व की तीन बड़ी ताकत अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने अजहर के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन ही नहीं किया बल्कि सुरक्षा परिषद में फ्रांस ने ही मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव रखा था। समझ से परे है, राहुल गांधी के कुतर्कों के पीछे किसका दिमाग है? उम्मीद है दो अगस्त 1955 के उन उस पत्र को जरूर राहुल गांधी देखें, समझें और पढ़ें। जो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस वक्त तमाम मुख्यमंत्रियों को लिखा था। पत्र में अनौपचारिक रूप से अमेरिका का जिक्र था, जिसमें उसने तर्क दिया था कि चीन को संयुक्त राष्ट संघ में लिया जाये, लेकिन उसे सुरक्षा परिषद में शामिल करना कतई घातक होगा। नेहरू के इसी पत्र में अमेरिका के उस सुझाव का भी अंश है, जिसमें कहा गया था कि भारत को भी सुरक्षा परिषद में लिया जाये। नेहरू ने तर्क दिया था कि चीन जैसे महान देश को सुरक्षा परिषद में नहीं लेने का मतलब, उसके साथ अन्याय होगा। कहा जा सकता है कि शायद राहुल गांधी को इतिहास से मतलब है, उनका मकसद सिर्फ आलोचना तक ही सीमित रहता है और यह भी जानना जरूरी है कि आजादी के बाद किस हद तक नेहरू और चीन की दोस्ती चरमता पर थी, उस वक्त नारा लगता था चाउमिन लाऊ और नेहरू भाई-भाई। पंडित नेहरू ने इसी भाईचारे का रिश्ता निभाया, नतीजा 1962 का युद्घ जिसमें भारत की करारी हार हुई और नेहरू इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके। यह सच है और दस्तावेजों में दर्ज सच्चाई है, जिसे कांगे्रसियों को पहले पढ़ लेना चाहिए, मुंह खोलने से पहले। अब सवाल उठता है कि चीन क्यों आतंकी सरगना मसूद अजहर को बचाना चाहता है। चीन इसलिए खौफ खाता है कि उसके उंगीहार प्रांत में आतंकवाद दस्तक दे चुका है, जिसके पीछे मसूद अजहर का नाम बताया जाता है। इसी के साथ चीन का सीपीईसी प्रोजेक्ट गिलगिट-बालिटस्तान क्षेत्र से ही नहीं जाता बल्कि यह प्रोजेक्ट अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के मानसेहरा जिले से उस इलाके से गुजरता है, जो खैबर पख्तूनख्वाह पड़ता है। अब समझना होगा कि चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट में बारह हजार से ज्यादा चीनी काम कर रहे हैं और उसे डर है कि यदि मसूद अजहर पर बैन का समर्थन किया तो उसके नागरिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। यह मान लिया जाये कि मतलबी चीन अपने स्वार्थों के लिए आतंकी मसूद का बचाव कर रहा है लेकिन ​विपक्ष अपने लोगों पर भरोसा क्यों नहीं कर रहा, क्यों गम्भीर और आपत्तिजनक बातें की जा रहीं, तो इन बातों का ​सिर्फ और सिर्फ एक ही जवाब है कि बहुत से देशद्रोही अपने देश में मौजूद हैं, जो देश को खंड—खंड, टुकड़ों में बांटना चाहते हैं, जो शायद सफल भी हो जायें, क्योंकि हम भारतीय मामूली रकम व लालच के लिए चोरों और डकैतों को अपना वोट बेंच देते हैं, हम भारतीय अपना महत्व जानते ही नहीं, इसी का फायदा विदेशी उठा रहे हैं। कुला मिलाकर देश का नेतृत्व नहीं, देश पर शासन और कब्जा करना चाह रहे हैं देशद्रोही।

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