शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूजन करने से मनवांछित फल देते हैं भगवान गणेश
अध्यात्म : पुराणों में वर्णन है कि प्रथम पूजा पार्वती नंदन गणेश की होती है, लेकिन प्रभु गणेश की इच्छा है कि गणेश पूजन से पहले माता पार्वती का वंदन किया जाये। इसीलिये कोई भी पूजन शुरू होने से पहले ऊं सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्ध साधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमस्तुते का मंत्र पढ़ा जाता है। इस वर्ष 24 मार्च को है गणेश चतुर्थी, मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर उपवास और पूजन करने से मनवांछित फल मिलते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान श्रीगणेश को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं। पूजा का धागा अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर से भगवान श्रीगणेश की आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद अन्य भक्तों को बांट दें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले व्यक्ति को शाम को चंद्र दर्शन करना चाहिए, पूजा करनी चाहिए। इसके बाद ही भोजन करना चाहिए। गणेश संकष्ट व्रत हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन आता है। चतुर्थी की तिथि माह में दो बार आती है, एक शुक्ल पक्ष में दूसरा कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का आशय है संकट को हरने वाली चतुर्थी। गणेश जी की प्रथम आऱाध्य देवता के रूप में पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले भगवान गणपति जी का आराधना की जाती है। किसी भी देवता या देवी का पूजन जब तक निर्रथक है जब तक गणेश जी की पूजा न कर ली जाए। इस बात की व्याख्या शिवपुराण, स्कंद पुराण, अग्नि पुराण एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में स्पष्ट रूप से मिलती है।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
महिलाएं इस दिन विशेषकर माएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। सुबह स्नान के बाद साफ कपड़े पहन कर एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर पूरे विधि-विधान के साथ भगवान श्रीगणेश जी की प्रतिमा को ईशान कोण में स्थापित किया जाता है। गणेशजी की पूजा के लिए जल, अक्षत, दूर्वा, लड्डू, पान, सुपारी और धूप आदि का विशेष तौर पर उपयोग होता है। ॐ गणेशाय नम: मंत्र के साथ जप करनी चाहिए। संकष्टी व्रत करने वाले भक्तों पर विध्न-विनाशक गणेश जी की विशेष अनुकंपा रहती है और उनके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी का उपवास जो पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसे बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि तीनों की प्राप्ति होती हैं और जीवन में आनेवाली तमाम विध्न बाधाओं का भी नाश होता है। व्रत एवं गणेश जी के पूजन के पश्चात ब्राह्मण को भोजन करवाने से अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष सभी अभिलाषित पदार्थ प्राप्त किए जा सकते हैं।
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