बोध कथा


प्रेरक प्रसंग : आचार्य चाणक्य मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री थे। एक दिन चाणक्य की कुटिया में एक महात्मा पधारे। शाम के भोजन का समय था, इसलिए चाणक्य ने शिष्टाचार के नाते महात्मा से भोजन के लिए पूछ लिया। महात्मा ने उनका आतिथ्य स्वीकारा। महात्मा ने देखा कि चाणक्य की कुटिया में बहुत ही साधारण भोजन बना है। थोड़ा-सा चावल, कढ़ी और एक सब्जी। महात्मा ने भोजन किया और हाथ धोने के बाद चाणक्य से पूछा— आप इस बड़े साम्राज्य के शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं, फिर यह सादा जीवन क्यों बिताते हैं। चाणक्य ने कहा— जनता की सेवा के लिए मैं प्रधानमंत्री बना हूं। इसका अर्थ यह नहीं कि राज्य की सम्पत्ति का अपने लिए उपयोग करूं। यह कुटिया भी मैंने अपने हाथों से बनाई है। महात्मा ने आगे पूछा— 'क्या आप अपनी आजीविका के लिए भी कुछ करते हैं। चाणक्य ने उत्तर दिया– 'हां, मैं किताबें लिखता हूं। मैं हर रोज आठ घंटे राज्य के लिए और चार घंटे परिवार के लिए काम करता हूं। महात्मा समझ गए कि जिस राज्य का प्रधानमंत्री चाणक्य हो, वहां की जनता कभी दुखी नहीं रह सकती। यही प्रेरणा चाणक्य से सभी को लेनी चाहिए।

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